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विशेष पिछड़ी जनजाति के परिवारों ने रेशम पालन से तीन लाख से अधिक कमाए

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जिले के दूरस्थ वनांचलों के गांवों में रहने वाली पहाड़ी कोरवा तथा बिरहोर जाति के लोगों के लिए रेशम पालन अतिरिक्त आय का जरिया बनने जा रहा है। पिछले वर्ष इन परवारों ने रेशम पालन कर तीन लाख 29 हजार रूपये की कमाई की है। जामभांठा, हरदीमौहा, देवपहरी और चुईया गांवों के पहाड़ी कोरवा व बिरहोर जनजाति के 10 परिवारों के लगभग 45 सदस्यों को कलेक्टर मो. कैसर अब्दुल हक ने पिछले दिनों अपने देवपहरी प्रवास पर यह राशि प्रदान की तथा उन परिवारों की इस पहल की प्रशंसा की। रेशम विभाग के जिला स्तरीय अधिकारियों ने आज यहां बताया कि वर्ष 2018-19 में कोरबा जिले के जामभांठा, हरदीमौहा, देवपहरी तथा चुईया गांवों में रहने वाले विशेष पिछड़ी जनजाति पहाड़ी कोरवा तथा बिरहोर के 10 परिवारों को रेशम पालन के लिए प्रशिक्षण देकर तैयार किया गया था। इन परिवारों को शासकीय अनुदान पर रेशम विभाग ने आठ हजार तसर कोसा कीट के अण्डे उपलब्ध कराए थे। पहाड़ी कोरवा तथा बिरहोर जनजाति के रेशम पालकों ने इन कीटों से कोसा उत्पादन किया था। अधिकारियों ने बताया कि इन सभी पहाड़ी कोरवा तथा बिरहोर जनजाति के रेशम पालकों द्वारा उत्पादित किए गए कोसा फलों को विभाग द्वारा निर्धारित दर पर खरीदा गया है। इनके द्वारा उत्पादित कोसा फल ‘बी’ व ‘सी’ गे्रड के पाए गए तथा उनका संग्रहण मूल्य कुल तीन लाख 29 हजार 962 रूपये हुआ।

यह राशि कलेक्टर मो. हक ने रेशम पालकों को बैंक चेक के माध्यम से प्रदान की तथा रेशम पालन के लिए अन्य पहाड़ी कोरवा व बिरहोर परिवारों को भी प्रोत्साहित किया।

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