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“टैरिफ वॉर में काम आएंगे भारत के 5 हथियार, अमेरिका के सामने भी खड़ी होगी मुश्किल”

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि 24 घंटों के अंदर भारत पर टैरिफ लागू कर दिया जाएगा। यह कितना हो सकता है, इस पर अटकलें जारी हैं। लेकिन यदि ट्रंप इसे लागू करते हैं तो इससे भारत के कृषि, वस्त्र, हथकरघा और फार्मास्युटिकल्स जैसे अहम क्षेत्रों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

इन क्षेत्रों का निर्यात प्रभावित होने से इन उद्योगों में मंदी या नौकरियों का संकट बढ़ सकता है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि भारत के हाथ पूरी तरह से खाली हैं। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत के पास इस स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त तंत्र मौजूद हैं। टैरिफ वॉर शुरुआती दौर में भारत के लिए झटका साबित हो सकते हैं, लेकिन लंबे दौर में यह भारत को ज्यादा व्यापक आर्थिक मजबूती हासिल करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और आर्थिक मामलों के जानकार गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने अमर उजाला से कहा कि अमेरिका हमारा बड़ा व्यापारिक साझीदार है। ऐसे में अचानक टैरिफ बढ़ने से हमें फौरी तौर पर कुछ नुकसान अवश्य उठाना पड़ सकता है, लेकिन केंद्र सरकार इससे होने वाले नुकसान से भारत के व्यापारियों, किसानों और उत्पादकों को बचाने के लिए कई अहम प्रयास कर रही है। इन प्रयासों से हम न केवल अपने हितों की रक्षा कर सकेंगे, बल्कि आने वाले दिनों में भारत की अर्थव्यवस्था को ज्यादा सुदृढ़ करने के उपाय भी खोज सकेंगे।

1. 20 हजार करोड़ का स्पेशल फंड गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि भारत 5 विशेष कदम उठाकर अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने की ओर आगे बढ़ रहा है। सबसे पहला उपाय तो यह है कि केंद्र सरकार 20 हजार करोड़ का एक विशेष फंड बनाने पर विचार कर रही है। इससे हमें अपने व्यापारियों-उत्पादकों को टैरिफ वॉर के तुरंत नुकसान से बचाने में मदद मिलेगी। इससे उत्पादकों के पास टैरिफ के हमलों से बचने के लिए अपनी नीतियों में बदलाव करने और नया बाजार तलाशने का समय मिल जाएगा।

2. उत्पादन कीमतों को कम करने पर जोर टैरिफ का सीधा असर भारतीय उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी के रूप में सामने आ सकता है। भारतीय उत्पाद महंगे होने से उपभोक्ता इसे खरीदने में कटौती कर सकते हैं, या इसके स्थान पर दूसरे देशों के उत्पादों को खरीद सकते हैं। लेकिन यदि भारतीय उत्पादों की उत्पादन लागत को कम किया जाए तो इससे भारतीय उत्पादों को अमेरिका सहित दुनिया के बाजारों में प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकेगा। इसके लिए केंद्र सरकार किसानों-उत्पादकों की उत्पादन लागत कम करने के उपाय भी आजमा सकती है।

कृषि या किसी अन्य वस्तु के उत्पादन में सबसे अधिक लागत बिजली, भूमि का किराया, पानी, लॉजिस्टिक्स के रूप में सामने आती है। लेकिन केंद्र सरकार लगातार इन कीमतों को कम करने के प्रयास कर रही है। बेहतर सड़कों का जाल लॉजिस्टिक्स की लागत को कम कर रहा है। सौर ऊर्जा के उपाय अपनाकर बिजली कीमत को लगातार कम करने का प्रयास किया जा रहा है। इसी तरह अन्य उपायों को अपनाकर भी वस्तुओं की उत्पादन कीमत कम करके इसे विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है।

3. दूसरे बाजारों की तलाश भारतीय निर्यात सेक्टर सबसे अधिक चीन और अमेरिका पर निर्भर है। यही कारण है कि जब-जब इन देशों से तनाव होता है तो भारत के सामने प्रमुख वस्तुओं की उपलब्धता पर संकट आ जाता है। चीन ने कुछ वस्तुओं के निर्यात को अपनी रणनीतिक पॉलिसी की तरह इस्तेमाल किया है। ऐसे में भारत के लिए यही सबसे बेहतर होगा कि वह केवल चीन-अमेरिका पर निर्भर न रहे, बल्कि वह यूरोपीय, अफ्रीकी और मध्य एशियाई देशों से अपना व्यापार बढ़ाए और चीन-अमेरिका पर निर्भरता कम करे। यह उसे दीर्घकालीन आर्थिक मजबूती प्रदान कर सकता है।

भारत ने इस समय ही ब्रिटेन की तरह कई अन्य देशों से द्विपक्षीय व्यापार को बेहतर बनाने के लिए काम किया है। उसे इसी तरह का प्रयास अन्य देशों के साथ भी अपनाना चाहिए। केंद्र सरकार एक मिशन बनाकर दूसरे देशों से अपने व्यापारिक संबंध बेहतर कर रही है। इसका जल्द ही परिणाम सामने आ सकता है और भारत की किसी देश विशेष पर निर्भरता कम हो सकती है।

4. आंतरिक व्यापार को मजबूत बनाना गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था आंतरिक व्यापार पर बहुत अधिक निर्भर है। हमारे पास अपना ही 140 करोड़ का बाजार है। सच्चाई है कि कई अहम सेक्टरों में हम अपने घरेलू मांग को ही नहीं पूरा कर पा रहे हैं। यदि अमेरिकी टैरिफ के कारण भारतीय निर्यातकों को कुछ नुकसान होता है तो यह घाटा घरेलू व्यापार को बढ़ाकर भी किया जा सकता है। केंद्र सरकार लगातार इस ओर प्रयास कर रही है। इसका परिणाम भी दिखाई दे रहा है, लेकिन नई परिस्थितियों में इसे और अधिक बल दिए जाने की आवश्यकता है।

5. टैरिफ अंतिम निर्णय नहीं, लेनदेन पर टिके होते हैं संबंध दो देशों के बीच संबंध आपसी लेनदेन पर निर्भर होते हैं। कोई भी देश अपने नागरिकों के हितों को पूरा करने के लिए स्वतंत्र होता है। ऐसे में यदि ट्रंप टैरिफ बढ़ाते हैें तो इससे अमेरिका की अपनी घरेलू राजनीति और अर्थव्यवस्था गड़बड़ा सकती है। कई अमेरिकी विशेषज्ञों ने अभी से यह कहना शुरू कर दिया है कि चीन की कीमत पर भारत को नाराज नहीं करना चाहिए। पिछले कई वर्षों में भारत अमेरिका का विश्वसनीय सहयोगी बनकर उभरा है, ऐसे में उसे नाराज करना ठीक नहीं होगा। विशेषकर यह देखते हुए कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चीन अपनी गतिविधियां बढ़ाकर रणनीतिक परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहा है। इससे निपटने के लिए अमेरिका के पास भारत से ज्यादा विश्वसनीय सहयोगी और कोई नहीं हो सकता।

इसके अलावा, अमेरिका के राष्ट्रपति ने अब तक टैरिफ वॉर को एक मोल भाव की चाल के तौर पर ही इस्तेमाल किया है। हो सकता है कि भारत के साथ भी बहुत जल्द अमेरिका का कोई ऐसा टैरिफ तय हो जो दोनों ही देशों के लिए लाभकारी हो। यदि अमेरिका फिर बातचीत की टेबल पर आता है तो हमें भी अपने हितों की रक्षा करते हुए उचित प्रस्ताव पेश करने चाहिये। ऐसे में अभी सब कुछ जल्दबाजी में खत्म नहीं मानना चाहिए। इसके लिए ट्रंप की असलियत सामने आने की प्रतीक्षा भी करनी चाहिए।