जांजगीर-चांपा- मिसल बंदोबस्त के नौ दशक बाद भी कृषि भूमि का लगान जस का तस है। अब भी यह लगान सन् 1929 में मिसल बंदोबस्त के समय से ही लिया जा रहा है। इसके चलते 10 से 15 लाख रुपए एकड़ तक की कृषि भूमि का लगान भी अधिकतम एक से डेढ़ रुपए प्रति एकड़ है। लगान की वसूली गांव में पटेल करते हैं, जहां पटेल नहीं हैं वहां यह काम कोटवारों के द्वारा किया जाता है।
बढ़ती महंगाई में सभी चीजों की कीमत बढ़ गई। विभिन्न चीजों का शुल्क भी बढ़ गया मगर कृषि भूमि का लगान 86 साल बाद भी जस का तस है। जमीन की कीमत भले ही 10 लाख से 15 लाख रुपए प्रति एकड़ हो गई मगर लगान अब भी एक से डेढ़ रुपए प्रति एकड़ है। यह लगान भी खेतों की मिट्टी कन्हार, मटासी आदि के आधार पर लगता है। लगान की व्यवस्था मालगुजारी के समय से चल रही है। सन् 1929 में मिसल बंदोबस्त के समय से ही यही लगान लिया जा रहा है। सभी चीजों की कीमत बढ़ने के बाद भी कृषि भूमि का लगान नहीं बढ़ा। कृषि का डायवर्सन कर मद परिवर्तन कराने से जरूर भूमि के लगान में आवासीय, व्यवसायिक आदि उपयोग के आधार पर वृद्घि होती है मगर कृषि भूमि का लगान परिवर्तित नहीं हुआ है। कृषि भूमि के लगान के अलावा किसानों से 1985 से पंचायत उपकर भी लिया जा रहा है। यह उपकर भी 30 साल से स्थिर है। पंचायत उपकर कृषि भूमि के लगान का आधा लिया जाता है। लगान नहीं बढ़ने के कारण पंचायत उपकर भी पिछले 30 सालों से स्थाई है। भूमि का लगान वसूलने का काम गांव के पटेल करते हैं। जिन गांवों में पटेल नहीं है, वहां इसकी वसूली गांव के कोटवार करते हैं। पटेलों को लगान वसूली के लिए निर्धारित कमिशन भी मिलता है। अधीक्षक भू-अभिलेख कार्यालय के राजस्व निरीक्षक एएन राठौर का कहना है कि कृषि भूमि का लगान 1929 में जो निर्धारित है, वही लिया जा रहा है। जमीन के आधार पर डेढ़ से तीन रुपए प्रति हेक्टेयर लगान निर्धारित है। इसमें सिंचित, असिंचित आदि देखा जाता है। लगान की वसूली गांव के पटेल करते हैं, जहां पटेल नहीं हैं वहां पंचायतों के द्वारा कोटवार के माध्यम से लगान वसूली की जाती है।
लगान कम फिर भी नहीं पटाते किसान
कृषि भूमि का लगान भले ही एक से डेढ़ रुपए प्रति एकड़ है मगर इसको भी पटाने में किसान रूचि नहीं लेते कई किसान 10 से 15 साल का लगान एक साथ जमा करते हैं, वहीं कई किसान वर्षों से लगान जमा नहीं किए हैं। यहीं हाल जलकर का भी है। किसान सिंचाई तो नहर के पानी से करते हैं मगर सिंचाई कर पटाने में कोताही करते हैं। ऐसे में शासन को राजस्व की क्षति हो रही है।
15 एकड़ तक भूमि पर शिक्षा विकास उपकर
जिन किसानों की भूमि 15 एकड़ या उससे अधिक है उनको शिक्षा विकास उपकर भी देना पड़ता है। यह टैक्स भी मामूली है। इसकी वसूली भी लगान व पंचायत उपकर के साथ पटेल ही करते हैं मगर इसे भी देने में किसान सजग नहीं है।
वसूली का औचित्य नहीं
लगान वसूली के एवज में पटेल को कमीशन मिलता है या उन्हें एकमुश्त राशि साल में दी जाती है। ऐसे में एक गांव में डेढ़-दो हजार रुपए से ज्यादा वसूली नहीं होती। इसमें भी डेढ़ दो सौ रुपए कमीशन में चला जाता है। ऐसे में इस लगान की वसूली से शासन को खास राजस्व प्राप्त नहीं होता। ऐसे में इस लगान की वसूली का औचित्य खास नहीं है। लगान की राशि में वृद्घि पर भी शासन को विचार करने की आवश्यकता है।