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बयान दर्ज कराने सात घंटे इंतजार करते रहे ग्रामीण, 24 घंटे बाद रवाना हुई सीबीआइ की टीम

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17 मई 2013 को बीजापुर जिले के एड़समेटा गांव में बीज त्योहार मना रहे ग्रामीणों को नक्सली समझ कर सुरक्षाबलों द्वारा किये गए गोलीबारी में 3 मासूम समेत 9 ग्रामीणों की मौत हो गयी थी जबकि 11 ग्रामीण घायल और एक जवान शहीद हुआ था। सात साल बाद इस मामले की जांच की जिम्मेदारी सीबीआइ को सौंपी गई है,जिसके बाद सीनियर अधिकारी सारिका जैन के नेतृत्व में चार सदस्यीय सीबीआई की जांच दल पीड़ितों का बयान लेने बीजापुर पहुंची थी जिसे गुरुवार दोपहर एक बजे ग्रामीणों का बयान लेने एड़समेटा पहुंचना था परंतु टीम गांव जाने के बजाय बीजापुर में ही घटना से संबंधित कागजात खंगालने में लगी रही जबकि गांव में सुबह 11 से शाम 5 बजे तक ग्रामीण अपना बयान दर्ज कराने घटना स्थल देवगुड़ी में डटे रहे। परन्तु टीम नही पहुंची तो ग्रामीण अपने घर लौट गए। दूसरी ओर निर्धारित समय से 24 घंटे बाद शुक्रवार को गंगालूर से दोपहर 12.30 बजे डीआरजी और सीआरपीएफ की कड़ी सुरक्षा में चार सदस्यीय टीम पैदल ही एड़समेटा के लिए रवाना हो चुकी है।

याचिकाकर्ता के साथ ग्रामीण थे मौजूद

गुरुवार को सीबीआइ टीम के एड़ेसमेटा पहुंचने की खबर पर जब नईदुनिया की टीम गांव पहुंची तो देवगुड़ी में करीब 100 से 150 लोग जांच दल का इंतजार कर रहे थे। इस दौरान ग्रामीण मंगलू ने बताया कि उन्हें जानकारी मिली थी कि सीबीआइ की टीम घटना के संबंध में उनका बयान लेने गांव आ रही है इसलिए वे सभी घटना स्थल पर ही एकत्र है ताकि जांच दल को घटनाक्रम की पूरी जानकारी दे सकें, परन्तु टीम के न आने से वे निराश है, ग्रामीणों का यह भी कहना है कि वे उसी शर्त पर अपना बयान दर्ज कराएंगे जब याचिकाकर्ता और उनके वकील वहां मौजूद होंगे जिसके चलते याचिकाकर्ता डिगली चौहान भी सोनी सोढ़ी के साथ गांव में ही डेरा डाले हुए है। हांलाकि शुक्रवार को ग्रामीणों का बयान दर्ज कराने सीबीआई की टीम गांव के लिए रवाना हो चुकी है। बताया जा रहा है कि बयान दर्ज कराने गांव पहुंची सीबीआई की टीम के द्वारा गांव के ही किसी मकान के बंद कमरे में पीड़ितों का बयान दर्ज किया जाएगा और मीडिया को उससे दूर रखा जाएगा।

एक नजर में एड़समेटा

एड़समेटा जिला मुख्यालय से 40 और गंगालूर से 15 किलोमीटर दूर दो पहाड़ियों के पीछे बसा हुआ है। जहां तक पहुंचने के लिए सिर्फ पगडंडी ही सहारा है। गांव में 70 मकान और करीब 200 की जनसंख्या है, गांव में आंगनबाड़ी, स्कूल और अस्पताल नहीं हैं। यहां के लोग पिछले 15 सालों से झिरिया का पानी पीने को मजबूर है। इस गांव से आगे पीडिया, तामोडी और गमपुर गांव पड़ते और यहां से और आगे चलेंगे तो किरंदुल पड़ता है। यहां के कुछ ही लोगों के पास राशन कार्ड भी मौजूद हैं, रोजमर्रा के समान के लिए इन्हें गंगालूर तक पैदल ही सफर करना पड़ता है।

भय के साये में होती है पूजा

17 मई 2013 को हुए गोली कांड के बाद गांव के देवगुड़ी में बीज त्योहार मनाया तो जाता है पर भय के साये में डर डरकर पूजा पाठ किया जाता है। घटना के बाद करीब दो साल तक गुड़ी में कोई त्योहार नही मनाया गया और आज भी जब पूजा पाठ किया जाता है तो वो रात को नहीं बल्कि दिन को ही किया जाता है।्र