”तब तो देश में न्याय व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी; HC जज के खिलाफ आदेश वापस ले SC जज ने क्यों कहा ..”
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने उस आदेश को वापस ले लिया, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार के खिलाफ सख्त टिप्पणी की गई थी और एक दीवानी मामले में आपराधिक कार्यवाही की अनुमति देने के लिए उनकी आलोचना की थी। शीर्ष अदालत ने आज स्पष्ट किया कि 4 अगस्त को दिए गए आदेश का उद्देश्य जस्टिस प्रशांत कुमार को शर्मिंदा करना या उन पर आक्षेप लगाना नहीं था। जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने यह आदेश सुनाया था। उनके इस आदेश पर काफी हंगामा हुआ था। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आधा दर्जन से ज्यादा जजों ने चिट्ठी लिखकर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से SC का आदेश नहीं मानने का अनुरोध किया था। इसके बाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने CJI को चिट्ठी लिखी थी। CJI के निर्देश पर जस्टिस जे बी पारदीवाला की अगुवाई वाली पीठ ने शुक्रवार को फिर से उस मामले की सुनवाई की और कहा कि उनकी पिछली टिप्पणी केवल न्यायपालिका की गरिमा बनाए रखने के लिए की गई थी। चीफ जस्टिस ही मास्टर रोस्टर जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई द्वारा मामले पर पुनर्विचार करने के अनुरोध के बाद वह इन टिप्पणियों को हटा रहे हैं। जस्टिस पारदीवाला ने अपने आदेश में कहा, “चीफ जस्टिस के पत्र के मद्देनजर, हम पुराने आदेश में क्रमशः पैरा 25 और 26 हटा रहे हैं और हम अब मामले की जाँच हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पर छोड़ते हैं। हम पूरी तरह से स्वीकार करते हैं कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ही मास्टर रोस्टर हैं। हमारे निर्देश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की प्रशासनिक शक्तियों में कोई भी हस्तक्षेप नहीं करते हैं।”
…तब तो देश में न्याय व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी जस्टिस पारदीवाला ने आगे लिखा, “हाल ही में, पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जे कुमार की एक पीठ ने कहा था कि हम जुर्माना लगाने के लिए बाध्य हैं क्योंकि दीवानी प्रकृति के आदेशों की बाढ़ आपराधिक प्रकृति में आ गई है… हमें उम्मीद है कि भविष्य में हमें उच्च न्यायालय के अनुचित या अवज्ञाकारी आदेशों का सामना नहीं करना पड़ेगा।” जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि अगर न्यायालय में ही कानून का शासन कायम नहीं रखा गया और उसकी रक्षा नहीं की गई, तब तो इस देश में न्याय व्यवस्था ही खत्म हो जाएगी। 4 अगस्त को जस्टिस प्रशांत पर की थी सख्त टिप्पणी बता दें कि जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस महादेवन की पीठ ने 4 अगस्त को एक अप्रत्याशित आदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार पर टिप्पणी करते हुए उन्हें रिटायर होने तक आपराधिक मामलों के रोस्टर से हटाने का आदेश दिया था, क्योंकि उन्होंने एक दीवानी विवाद में आपराधिक प्रकृति के समन को बरकरार रखा था। इस आदेश के क्षुब्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जजों ने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि वह एक पूर्ण अदालत बैठक बुलाएं, ताकि उच्चतम न्यायालय के उस आदेश पर चर्चा हो सके, जिसमें जस्टिस कुमार को आपराधिक रोस्टर से हटाने का निर्देश दिया गया था। HC के 8 जजों चीफ जस्टिस को लिखी थी चिट्ठी यह पत्र जस्टिस अरिंदम सिन्हा ने 4 अगस्त को पारित उच्चतम न्यायालय के आदेश पर दुख व्यक्त करते हुए लिखा था, जिस पर सात न्यायाधीशों ने हस्ताक्षर किए हैं। उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में न्यायमूर्ति कुमार की न्यायिक तर्कशक्ति पर कड़ी टिप्पणियां की थीं और इलाहाबाद उच्च न्यायालय प्रशासन को निर्देश दिया था कि उन्हें आपराधिक रोस्टर से हटा दिया जाए।