दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद जब पूरी दुनिया आर्थिक दुष्परिणाम के दौर से गुजर रही थी तब भारत के भीतर स्वतंत्रता की मांग तेज हो गई थी. देश में उस समय राजनीतिक चेतना अपने उच्चतम स्तर पर थी. इसके साथ ही ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद से माहौल बदलने लगा था. इसी वजह से ब्रिटिश सरकार को भारत को आजाद देने के लिए ठोस पहल करने की जरूरत पड़ी.
साल 1945 में भारत में ब्रिटिश सरकार ने राष्ट्रीय और विधान सभाओं के लिए चुनाव कराने की घोषणा की. पंजाब में चुनाव फरवरी 1946 में होने थे. कांग्रेस का लक्ष्य ज्यादातर प्रांतों में बहुमत हासिल करना था ताकि वह एकीकृत भारत की सरकार बनाने का दावा पेश कर सके. वहीं, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (AIML) और उसके सबसे बड़े नेता मोहम्मद अली जिन्ना का लक्ष्य मुस्लिम बहुल प्रांतों में चुनाव जीतना था ताकि वह न केवल सबसे बड़ी मुस्लिम पार्टी होने का दावा कर सके, बल्कि उन क्षेत्रों से अलग मुस्लिम राष्ट्र-राज्य बनाने की अपनी मांग पर भी जोर दे सके जो मुस्लिम बहुल थे. अविभाजित भारत में बंगाल और पंजाब में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी थी