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नक्सल इलाके के 62 गांवों के 3 हजार बच्चे पहली बार देखेंगे तिरंगा फहराते

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बस्तर संभाग के अत्यंत नक्सली प्रभावित संवेदनशील इलाके दक्षिण बस्तर के मासूम आदिवासी बच्चे दहशत के आलम में गांव में ही सिमटे पड़े थे। तीसरी पीढ़ी को दहशत से दूर और उनकी मानसिकता बदलने के लिए जिला प्रशासन बुधवार से एक अभिनव योजना शुरू कर रहा है। इस योजना के तहत 62 गांव के आदिवासी बच्चे पहली बार तिरंगा फहराते हुये नजर आएंगे। चूंकि नक्सली प्रभावित अत्यंत संवेदनशील इलाकों में राष्ट्रीय पर्व पर काले झण्डे फहराये जाते हैं, इसलिए इन बच्चों ने हमेशा काला झण्डा ही फहरते देखा है। सुकमा कलेक्टर जयप्रकाश मौर्य ने बताया कि जिले के अत्यंत संवेदनशील कोंटा विकासखण्ड के अंदरूनी हिस्से में सन 2008 में जब सलवा जुडूम शुरू हुआ था तो इन इलाकों में हिंसा के कारण 62 गांव के स्कूलों को अन्य जगहों पर स्थानांतरित कर दिया गया था, जिससे आठ हजार बच्चे पोटाकेबिन आश्रम छात्रावास में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि 62 गांवों की लगभग 35 हजार की आबादी की संख्या में लगभग 3 हजार से अधिक बच्चों का सर्वेक्षण किया गया है, जिसमें 1300 से अधिक बालिकाएं हैं। मौर्य ने बताया कि प्रथम चरण में इन गांवों से 300 बालक बालिकाओं को जिला मुख्यालय लाया गया है। ये बच्चे पहली बार बस में चढ़े, रोशनी और लोगों की बस्ती देखी। आज तक ये बच्चे नक्सली-पुलिस, गोलियां व लाशों के दिल दहलाते मंजर ही देखते आए हैं। पिछले पांच दिनों से जिला प्रशासन इन बच्चों की मानसिकता को बदलने में लगा हुआ है। इन्हें कपड़ा पहनना, नहाना सिखाया जा रहा है, उनके नाखून काटे जा रहे हैं। ये सभी बच्चे हिन्दी नहीं जानते, इनके लिए एक अनुवादक भी रखा गया है। उन्होंने बताया कि इन 3000 बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण भी कराया जा रहा है। इसके बाद इनके आधार कार्ड बनाये जायेंगे। 15 अगस्त को जिला मुख्यालय में इन्हें स्वतंत्रता दिवस का पर्व दिखाया जायेगा।

पहली बार बच्चे तिरंगा झण्डा फहरता देखेंगे। इसके बाद इन्हें विभिन्न पर्यटन स्थलों का भ्रमण करवाकर वापस गांव भेजा जायेगा, जहां उनकी पढ़ाई शुरू होगी। मौर्य ने बताया कि कोंटा विकासखण्ड के बारहवीं पास छात्र-छात्राओं का चयन कर उन्हें शिक्षादूत बनाया जा रहा है, जो गांवों में जाकर बंद स्कूलों को खोलेंगे। इसके लिए 62 गांवों में 62 झोपड़ियां बनायी गई हैं। इन झोपड़ियों में बच्चों को शिक्षा दी जायेगी। इसके पूर्व उन्हें पंचायत स्तर से एक माह का प्रशिक्षण भी दिया गया है। ये प्रतिमाह 5 हजार रुपये मानदेय पर कार्य करेंगे। उन्होंने बताया कि सलवा जुडूम के चलते 102 प्राथमिक शालाएं एवं 21 माध्यमिक शालाएं सालों से बंद पड़ी हैं।

अंदरूनी इलाकों की बंद पड़ी शालाओं को फिर से प्रांरभ किया जायेगा। ग्रामीणों की मानसिकता बदली जायेगी, इन सबसे गांव में एक विकास का रास्ता खुलेगा। कंलागतोंग, आमापेटटा गांव के रामू, लच्छू और लक्ष्मी ने अनुवादक के जरिए बताया कि हम लोग हमेशा दहशत में रह रहे थे। पुलिस और नक्सलियों के बीच गोलीबारी और नक्सलियों की जबरदस्ती एवं गांव में आतंक को देखते डर के मारे घर से नहीं निकलते थे, पूरे गांव का यही हाल था। कृषि का कोई काम नहीं किया जाता है और हमारे गांवों में पुलिस के अलावा सरकार का कोई भी आदमी नहीं आता। स्वास्थ्य, पेयजल, शिक्षा जैसी सारी बुनियादी सुविधाओं के हम बरसों से मोहताज बने हुए हैं।

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