सूरजपुर जिले में रेण नदी के किनारे एक गांव बसा है. यहां आस्था का ऐसा केंद्र है. जहां मन्नत मांगने पर वह पूरी हो जाती है. इस जगह पर छत्तीसगढ़ ही नहीं झारखंड, एमपी और अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु पहुंचते है और मन्नत मांगते है.
सूरजपुर. छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले का एक गांव है. जहां जाकर लोग नारियल, फूल, अगरबत्ती चढ़ाकर पूजा अर्चना कर मन्नत मांगते है. लेकिन छत्तीसगढ़ में एक ऐसी जगह है जहां लोग देवी देवता की नहीं दानव की पूजा करते है. सुनने में अजीब लग सकता है. लेकिन ये सच है. प्रदेश के सूरजपुर जिले में रेण नदी के किनारे एक गांव बसा है. यहां आस्था का ऐसा केंद्र है. जहां मन्नत मांगने पर वह पूरी हो जाती है. इस जगह पर छत्तीसगढ़ ही नहीं झारखंड, एमपी और अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु पहुंचते है और मन्नत मांगते है.
बैगा के पूजा पाठ से प्रसन्न हुआ बकासुर दानव
सूरजपुर जिले के भैयाथान ब्लॉक अन्तर्गत खोपा नामक गांव है, जो रेण नदी के किनारे बसा हुआ है. इस गांव में एक धाम है, जहां देवी देवता की नहीं दानव की पूजा होती है. इसके पीछे की कहानी भी काफी रोचक है. मान्यता है कि खोपा गांव के बगल से गुज़रे रेण नदी में पुराने समय में बंकासुर नाम का दानव रहता था. बंकासुर गांव के एक बैगा के पूजा पाठ से प्रसन्न हो गया और अपने साथ ले जाने के लिए कहा. इस पर बैगा बंकासुर दानव को अपने घर में ले जाना चाहता था लेकिन बकासुर ने ऐसा करने से मना किया और बाहर में ही रहने की बात कही. तब से खोपा गांव में दानव बंकासुर की पूजा शुरू हो गई. खोपा गांव को अब खोपा धाम के नाम से जाना जाता है, और खास बात ये है कि यहां कोई पंडित या पुजारी पूजा नहीं कराता, बल्कि बैगा पूजा करवाते है.
सूरजपुर जिले के भैयाथान ब्लॉक अन्तर्गत खोपा नामक गांव है, जो रेण नदी के किनारे बसा हुआ है. इस गांव में एक धाम है, जहां देवी देवता की नहीं दानव की पूजा होती है. इसके पीछे की कहानी भी काफी रोचक है. मान्यता है कि खोपा गांव के बगल से गुज़रे रेण नदी में पुराने समय में बंकासुर नाम का दानव रहता था. बंकासुर गांव के एक बैगा के पूजा पाठ से प्रसन्न हो गया और अपने साथ ले जाने के लिए कहा. इस पर बैगा बंकासुर दानव को अपने घर में ले जाना चाहता था लेकिन बकासुर ने ऐसा करने से मना किया और बाहर में ही रहने की बात कही. तब से खोपा गांव में दानव बंकासुर की पूजा शुरू हो गई. खोपा गांव को अब खोपा धाम के नाम से जाना जाता है, और खास बात ये है कि यहां कोई पंडित या पुजारी पूजा नहीं कराता, बल्कि बैगा पूजा करवाते है.