देश के राष्ट्रपति दो दिवसीय बस्तर प्रवास पर पहुंचे थे, तो ऐसा लगा वे आदिवासी इलाके और समाज के प्रति उनका नजरिया सकरात्मक होगा लेकिन राष्ट्रपति केवल शासकीय कार्यक्रमों तक ही सीमित रहे। बस्तर देश के आदिवासी क्षेत्रों में अलग स्थान रखता है, इसलिए उम्मीद थी कि राष्ट्रपति शासकीय कार्यक्रमों के अलावा संभाग के मूल समाज खासकर आदिवासियों के प्रतिनिधि मण्डल से मुलाकात करेंगे पर ऐसा हुआ नहीं। उपरोक्त बातें सर्वआदिवासी समाज के संरक्षक अरविंद नेताम ने आदिवासी समाज भवन में आयोजित पत्रवार्ता के दौरान कही।
नेताम ने बताया कि राष्ट्रपति से मुलाकात के लिए सर्वआदिवासी समाज मुख्यालय से आठ दिन पहले ही आवेदन दिया गया था, किन्तु राष्ट्रपति कार्यालय से इसका कोई जवाब नहीं आया। नेताम ने कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि राज्य सरकार ने सर्वआदिवासी समाज और राष्ट्रपति के बीच कहीं न कहीं रोड़े अटकाने का काम किया। पत्रकारों को बताया कि समाज गत पंद्रह वर्षों से संवैधानिक अधिकार की लड़ाई लड़ रही है जिसे लेकर समय-समय पर आंदोलन भी किया गया।
प्रदेश सरकार की ओर से आदिवासियों के मामले पर आज तक कोई सार्थक पहल नहीं की गई। नेताम का मानना है कि आदिवासियों की समस्याएं देश में लगातार बढ़ रही हैं, इस पर सरकारों को विचार करना होगा। नेताम ने कहा कि समाज चाहता था कि उच्च न्यायालय की खण्डपीठ, राज्य सुरक्षा कानून और एनएमडीसी के मुख्यालय को जगदलपुर लाए जाने पर राष्ट्रपति का ध्यानाकर्षित किया जाता लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि उक्त मांगों को लेकर एक ज्ञापन महामहिम के विशेष सचिव को दिया गया है।
हल से होगी शांति, गोली से नहीं
नेताम का मानना है कि बस्तर में फैले माओवाद पर नियंत्रण के लिए सरकार को अपना नजरिया बदलना होगा। यहां पर गोली से शांति स्थापित होना संभव नहीं है। इसके लिए शिक्षा और विकास आवश्यक है। खेती किसानी के क्षेत्र में बस्तर जब विकास करेगा तब ही यहां शांति आएगी। माओवादियों से चर्चा के रास्ते हमेशा खुले हैं।