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असम में डायन बताकर लोगों की हत्या के ख़िलाफ़ क़ानून को मंज़ूरी

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गुवाहाटी: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने असम डायन प्रताड़ना (प्रतिबंध, रोकथाम और संरक्षण) विधेयक, 2015 को मंज़ूरी दे दी है जिसके बाद यह विधेयक असम विधानसभा से पारित होने के करीब तीन साल बाद क़ानून बन गया है.

समाज से अंधविश्वास का सफाया करने पर लक्षित इस क़ानून में सात साल तक क़ैद की सज़ा और पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है.

राष्ट्रपति सचिवालय की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार कोविंद ने 13 जून को इस विधेयक को मंज़ूरी प्रदान की और इस क़ानून के तहत कोई भी अपराध ग़ैर ज़मानती, संज्ञेय अपराध बन गया.

लोगों खासकर महिलाओं को डायन बताकर प्रताड़ित करने और जादू-टोने जैसी चीज़ों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ने वाली बीरुबाला राभा ने बताया कि यह बहुत अच्छा क़दम है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा लोगों को जागरूक बनाना और कानूनों को सख़्ती से लागू करना है.

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (सीआईडी) अनिल कुमार झा ने बताया कि असम में लोगों खासकर महिलाओं को डायन बताकर उनकी हत्या कर देना बहुत पुरानी समस्या है. 2001-2017 के दौरान 114 महिलाओं और 79 पुरुषों को डायन/ओझा क़रार देकर उनकी हत्या कर दी गई. इस दौरान पुलिस ने 202 मामले दर्ज किये.

इस समस्या से निपटने के लिए असम विधानसभा ने 13 अगस्त, 2015 को सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया था.

अंधविश्वास के ख़िलाफ़ प्रचार करने वाले कार्यकर्ताओं ने विधेयक को राष्ट्रपति से मंज़ूरी मिलने का स्वागत किया है. हालांकि उनका कहना है कि केवल क़ानून से समस्या से नहीं निपटा जा सकता है बल्कि समाज में जागरूकता फैलाना ज़रूरी है.

गोलपाड़ा ज़िले के ठाकुरभीला गांव में रहने वाली 65 वर्षीय बीरुबाला राभा ने इसके ख़िलाफ़ 1996 में तब संघर्ष करना शुरू किया था जब उनके बेटे को एक तंत्र मंत्र करने वाले ने तकरीबन मार ही डाला था.

एक तांत्रिक द्वारा समाज से बहिष्कृत कर देने की धमकी के बावजूद का इस अंधविश्वास के ख़िलाफ़ न सिर्फ खड़ी हुई बल्कि अपने एनजीओ के गठन से पहले 50 महिलाओं को बचाया भी जिन्हें डायन बताया जा रहा था.

बीरुबाला ने बताया, ‘हम लोग बिना क़ानूनी सहयोग के सभी बुराइयों के ख़िलाफ़ पूरे जीवन भर काम करते रहे. लेकिन अब इस क़ानून के कारण डायन बता कर लोगों की हत्या करने की घटना में शामिल लोग अपराध करने से पहले दो बार सोचेंगे.’

बीरुबाला और उनका गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘मिशन बीरुबाला’ दूरदराज़ के स्थानों पर गंभीर प्रतिकूल परिस्थितियों काम कर रहे हैं जहां ग्रामीणों ने कई मौकों पर इस साहसी महिला को डायन करार देकर मारने का प्रयास किया.

विधेयक बनाने से पहले बीरुबाला राभा से उनका पक्ष सुना गया और इसमें शामिल किया गया. द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार विधेयक बनाने में एक अन्य शख़्स ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

पुलिस महानिदेशक कुलाधर सैकिया ने डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल रहते हुए कोकराझाड़ रहते हुए साल 2001 में प्रोजेक्ट प्रहरी की शुरुआत की थी. जो इस अंधविश्वास के ख़िलाफ़ लोगों को जागरूक करता था.

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