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यूपी चुनावों में निर्णायक वोटर होंगे OBC, हर दल की टिकी है निगाह

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 उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में चुनावों के लिए जातीय समीकरण कितने महत्वपूर्ण हैं? इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव से पहले और किसी भी मुद्दे पर काम करने से ज्यादा हर राजनीतिक पार्टी जातीय समीकरणों को पूरी तरह से दुरुस्त करना चाहती है. इसमे सबसे ज्यादा खास हैं ओबीसी (OBC) यानी कि अन्य पिछड़ी जातियों के वोट. यूपी में बीजेपी (BJP) ने साफ तौर पर दावा किया है की पिछड़ी जातियों के 60 फ़ीसदी वोट में से ज्यादातर वोट उनके पास ही आने है. यही दावा दूसरी राजनीतिक पार्टियां भी कर रही हैं कि पिछड़ी और दलित जातियों पर उनका जोर है.

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कई बार यह दावा कर चुके हैं. मौर्य का दावा है कि यूपी के कुल 100 में से 60 फ़ीसदी वोट बीजेपी का है, और बाकी 40% में से भी बाकी पार्टियां बंटवारा करेंगी. इस बंटवारे मे भी बीजेपी का हिस्सा है. यह कहकर उन्होंने साफ कर दिया कि यूपी मे ओबीसी केवल समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस के कोर वोटर नबी बल्कि बीजेपी के साथ भी है.

केशव मौर्य के इस दावे के पीछे क्या समीकरण और क्या तर्क है यह नहीं पता चला लेकिन जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी ओबीसी वोटर्स के बारे में दावे और रणनीति बना रही है. उससे एक बात साफ है कि इस बार पिछड़ी जातियों का वोट हर बार से ज्यादा महत्वपूर्ण रहने वाला है. उसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि पिछड़ी जातियों, दलितों का वोट माना जा रहा है कि इस बार बहुजन समाज पार्टी से खिसक रहा है. उस खिसकते हुए वोट पर हर कोई अपने तरीके से नजरें गड़ाए बैठा है.

हालांकि उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य ने बाकी बचे जिस 40% वोट में अपना हिस्सा होने की बात कही थी उसका सामाजिक समीकरण साफ है. प्रदेश में करीब 18 फीसदी मुसलमान 12 फीसदी जाटव और 10 फीसदी यादव हैं. इसके अलावा बाकी जातियों में यानी 18% में सवर्ण दलित और दूसरी जातियां हैं ऐसे में इन वोटरों में से मुस्लिम को छोड़कर बीजेपी 10 फीसद यादव पर भी अपना दावा मानकर चल रही है. यानी उनके पास ऐसी रणनीति है जिसके आधार पर वह 10 प्रतिशत यादव वोट में भी सेंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं. अगर साल 2017 के चुनाव में वोटों के प्रतिशत पर नजर डालें तो उन चुनाव में समाजवादी पार्टी को 22 फीसदी बहुजन समाज पार्टी को 18 फीसदी वोट मिले थे.

इस बार बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत यूपी में यादव समुदाय से तीन जगहों पर जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया है. सरकार ने भी यादव मंत्री हैं. सरकार आने वाले दिनों में यादवों की बड़ी रैली करने जा रही है. जिसका सीधा मतलब है कि बीजेपी यादवों के वोट में पैठ करने की बड़े स्तर पर तैयारी कर रही है. इसके अलावा अहम कड़ी जाटों को भी पार्टी संगठन में जगह दी गई है. जाट नेताओं को संगठन में उपाध्यक्ष बनाया गया है. यूपी कैबिनेट में भी अशोक जाटव को मंत्री बनाया गया है. इसके अलावा आयोग में भी जाटव समुदाय से रामबाबू हरित को अध्यक्ष बनाया गया है. इस तरह से यादव और जाटों को साधने की बीजेपी ने पुरजोर कोशिश की है.

केंद्र में मोदी सरकार ने भी यूपी के जाट और दलित समुदाय के तीन मंत्रियों को कैबिनेट में जगह दी है. एसपी बघेल गडरिया धनगर जाति के हैं, भानु प्रताप वर्मा कोरी जाति के हैं, तो वही कौशल किशोर पासी जाति से हैं. इन तीनों नेताओं के जरिए 2022 में चुनावी समर में उतरने से पहले बीजेपी ने यह जताने की कोशिश की है कि वह पिछड़ी और गरीब जातियों के साथ भी मौजूद हैं. अब इन्हीं नेताओं के जरिए बीजेपी जाट बाहुल्य जिलों और इलाकों में वोटरों तक पहुंचने का काम करेगी.

उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ी वर्ग का है. जबकि प्रदेश में 10% ब्राह्मण हैं, 18% में सभी समान्य जातियां हैं. पिछड़े वर्ग में 40% जातियां आती हैं जिनमें 10% यादव कुर्मी और दूसरी जातियां हैं. मल्लाह 5 फीसदी, लोध 3 फीसदी जाट भी 3 फीसदी, विश्वकर्मा और गुर्जर भी आती हैं. इसके अलावा प्रदेश में 22% जातियां अनुसूचित जाति हैं और बाकी 18% मुस्लिम जाति के लोग हैं. इन्हीं सब समीकरणों को ध्यान में रखकर के बीजेपी प्रदेश की 60% जनता पर अपना फोकस करके चल रही है.

हालांकि इस मामले में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों का माना है कि बीजेपी दिवास्वप्न देख रही है. समाजवादी पार्टी के मुताबिक इस बार यादव ही नहीं बल्कि सवर्ण जातियां भी समाजवादी पार्टी के पक्ष में आएंगी. उसकी वजह ये है कि पिछले 1 साल में कोरोना संक्रमण के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरकार से जिस तरह से सभी वर्ग के खासतौर ब्राह्मण और सवर्ण वर्ग के दूसरे लोग परेशान हुए हैं उसने बीजेपी के कोर वोटर्स के थोडा दूर किया है.

समाजवादी पार्टी का दावा है कि इनके पास बसपा और कांग्रेस के पास जाने का विकल्प नहीं है ऐसे में सबसे मजबूत विकल्प उनके पास समाजवादी पार्टी है. इसलिए इस बार सवर्ण वोटर समाजवादी पार्टी के पाले में आने की ज्यादा गुंजाइश है. समाजवादी पार्टी के नेता अनुराग भदौरिया का मानना है कि बीजेपी ने जिस तरह से महंगाई, भ्रष्टाचार, कोरोना के दौरान दवाइयों की कमी, मेडिकल सुविधाओं की किल्लत के चलते जनता को तकलीफ दी है उसका बदला जनता जरूर लेगी, और इसी कड़ी में जनता 2022 के चुनाव में वोट ना देकर बीजेपी को सबक सिखाएगी.

बहुजन समाजवादी पार्टी के नेताओं का दावा यह है पिछड़ा और दलित वोट उनसे कहीं नहीं भटकने वाला, क्योंकि साल दर साल मायावती सरकार ने इन लोगों के हित के लिए जो कार्य किए गए हैं वह किसी सरकार ने नहीं किया. बीजेपी सरकार ने दलितों और पिछड़ों के साथ अत्याचार की सभी सीमाएं पार कर दी हैं. किसी भी तरीके से उनको न्याय नहीं मिला जिससे उनको इस सरकार से कोई उम्मीद नहीं है.

बहरहाल सियासी पार्टियों का एक-दूसरे पर आरोप और ज्यादा से ज्यादा वोटर्स को लुभाने के पीछे का कारण साफ है कि प्रदेश में पिछड़ा और दलित वोटर बहुसंख्यक है. उसको अपने में पाले में किए बगैर सत्ता की चाबी मिलना मुश्किल है. इसीलिए बीजेपी से लेकर बसपा, सपा और कांग्रेस सब उस पर लगातार दावा कर रहे हैं. अब वोटर्स के मन में असलियत में क्या है यह सामने आना बाकी है. इससे पहले सभी सियासी पार्टियां अपना जोर लगा रही हैं कि ज्यादा से ज्यादा अपना इनको लुभा सके औऱ चुनावों मे वोटों के रूप में भुना सकें.