देश के सात राज्यों ने जिसमें भाजपा शासित गुजरात और बिहार भी शामिल हैं, पीएम फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाय) से अपना नाम वापस ले लिया है. इसके पीछ की वजह जानने के लिए संसदीय समिति ने केंद्र से सवाल पूछा कि आखिर क्यों देश के सात बड़े राज्यों ने इस योजना से अपना नाम वापस लेने का फैसला लिया है. समिति ने ये सवाल भी पूछा है कि क्या ये पीएम फसल बीमा योजना की अलोकप्रियता है या योजना में कोई बड़ी खामी रह गई है.
संसद में आई रिपोर्ट से पता चलता है कि 2016 में योजना के लागू होने के बाद से ही पंजाब कभी भी इसमें शामिल नहीं हुआ, वहीं बिहार और बंगाल ने 2018 और 2019 में अपना नाम वापस ले लिया था. इसी तरह आंध्र प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और झारखंड ने भी 2020 में योजना में शामिल होना नामंजूर कर दिया. केंद्र ने इसके विरोध में तर्क देते हुए बताया कि सात राज्यों को छोड़ भी दें, तो योजना में किसानों के प्रार्थना पत्रों में इज़ाफा हुआ है और जहां 2015-16 में इनकी संख्या 4.95 करोड़ थी, वहीं 2019-20 में ये संख्या बढ़कर 6.08 तक पहुंच गई है जो इस योजना की प्रसिद्धि और सफलता को ज़ाहिर करता है.
केंद्र ने बताया कि राज्य सरकारों की आर्थिक बाधाएं और सामान्य मौसम के दौरान कम दावा अनुपात इस योजना को वापस लेने के पीछे की बड़ी वजह है. हालांकि नाम वापस लेने वाले ज्यादातर राज्य खुद की योजना लागू कर रहे हैं. समिति का मानना है कि योजना से नाम वापस लेना या उसे चालू नहीं रखने से इस योजना को जिस उद्देश्य के साथ शुरू किया था, वो पूरा नहीं हो पाएगा.
सरकार का कहना है कि 2019 में खरीफ फसल के दौरान 4.4 करोड़ किसानों के प्रार्थना पत्र प्राप्त हुए, वहीं 2020 में खरीफ फसल के दौरान आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड और गुजरात के योजना को क्रियान्वित नहीं करने की वजह से यह संख्या 4.27 करोड़ रही. हालांकि बाकी के 17 राज्यों ने 2019 और 2020 में खरीफ फसल में योजना का क्रियान्वयन जारी रखा और इसलिए 2019 में 3.58 करोड़ प्रार्थना पत्रों में इज़ाफा हुआ और इसके साथ संख्या 4.27 करोड़ पहुंची. 2020 से यह योजना किसानों के लिए स्वैच्छिक कर दी गई है. इसमें किसानों को प्रीमियम का महज़ 1.5 से 5 फीसद चुकाना होता है, बाकी धनराशि राज्य सरकार और केंद्र आधा-आधा वहन करती है.
प्रीमियम की अनिवार्य कटौती नहीं
समिति ने पीएम फसल बीमा योजना के एक प्रावधान पर कड़ी आपत्ति जताई है, जिसमें कहा गया है कि ऐसे कर्जदार किसान जो इस योजना में नहीं जुड़े रहना चाहते हैं वो संबंधित बैंक शाखा में जानकारी देकर योजना से साल में किसी भी वक्त बाहर निकल सकते हैं, बस उन्हें इसके लिए संबंधित मौसम के किसानों के नामांकन से एक हफ्ते पहले इत्तिला करना होगा, ऐसा नहीं करने पर उनकी प्रीमियम राशि योजना के वर्तमान नियम के मुताबिक कट जाएगी.
समिति का कहना है कि भले ही किसानों के पास योजना से बाहर निकलने का प्रावधान है, लेकिन किसान इस जानकारी से अनभिज्ञ होते हैं और उनके अकाउंट से पैसे कट जाते हैं. समीति ने इसलिए विभाग से इस प्रावधान को बदलने की सिफारिश की है.