सुप्रीम कोर्ट ने फरीदाबाद के खोरी गांव के वन क्षेत्र में स्थित करीब 10 हजार घरों को छह हफ्ते के भीतर ढहाने के अपने पूर्व आदेश में बदलाव करने से इनकार कर दिया. जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस दिनेश महेश्वरी की बेंच ने यह आदेश एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. याचिका में ढहाने की कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की गई थी.
कोर्ट ने कहा, ‘हमारी राय में इस चरण पर कोर्ट द्वारा दखल देने का कोई कारण नहीं बनता.’ वन क्षेत्रों में रह रहे लोगों की ओर से पेश वकील अपर्णा भट्ट ने कोर्ट से कहा कि कोविड-19 महामारी के इस दौर में ढहाने की कार्रवाई न की जाए. वहां अधिकतर प्रवासी मजदूर रहते है और संकट के इस दौर में वे बेघर हो जाएंगे. साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि निगम, पुनर्वास योजना के लिए यहां रहने वाले लोगों के दस्तावेजो को स्वीकार नहीं कर रहा है. जवाब में कोर्ट ने कहा कि ढहाने की कार्रवाई को हम नहीं रोक सकते. लोगों के पास वन भूमि खाली करने का पर्याप्त अवसर था. पिछले छह सालों से यह सब कुछ चल रहा है.
वही पुनर्वास योजना के लिए दस्तावेजों को स्वीकार न करने के आरोप पर कोर्ट ने निगम को इस पर नियम के तहत काम करने के लिए कहा है. वकील भट्ट ने कहा कि महामारी के दौरान बेदखल किए जाने वाले लोगों के लिए कम से कम एक अस्थायी आश्रय प्रदान किया जाना चाहिए क्योंकि इनमें बड़ी संख्या में बच्चे व महिलाएं हैं. जवाब में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मुद्दे को देखना हरियाणा राज्य का काम है.
सुनवाई के दौरान हरियाणा सरकार ने कहा कि अतिक्रमण करने वाले लोग, ढहाने की कार्रवाई करने वाले अधिकारियों पर पथराव करते हैं. इस पर कोर्ट ने कहा कि इसके लिए किसी आदेश की आवश्यकता नहीं है और अधिकारियों को पता है कि क्या करना है.
सात जून को सुप्रीम कोर्ट ने फरीदाबाद निगम को वन क्षेत्र में बने करीब 10 हजार निर्माणों को छह हफ्ते के भीतर ढहाने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि हर हालत में वन क्षेत्र खाली होना चाहिए और इसमें किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता.