नक्सल हिंसा से किसी को फायदा नहीं होने वाला। जिनके बेटे मर रहे उनसे पूछिए। सरकार विकास के रास्ते हिंसा का हल तलाश रही है लेकिन विकास किसके लिए। जल, जंगल, जमीन के मसले हल क्यों नहीं किए जाते। पंचायती राज, वनाधिकार से लेकर पेसा कानून तक आदिवासियों को अधिकार देने के प्रयास तो काफी हुए लेकिन इन कानूनों की न सही व्याख्या हुई न इन्हें सही ढंग से लागू किया गया। यह सारी चिंता बुद्घिजीवियों के सम्मेलन में दिखी।
गोंडी भाषा में मोबाइल समाचार सर्विस चलाने वाले सीजी नेट स्वर के संचालक शुभ्रांशु चौधरी के संयोजन में रायपुर जिले के तिल्दा में एकता परिषद के आश्रम में मध्यभारत में शांति की तलाश करने लिए देश भर के प्रबुद्घ नागरिक जुटे। तीन दिन के सम्मेलन जिसका नाम विकल्प संगम दिया गया था, का समापन रविवार को किया गया।
सबने कहा-नक्सली हिंसा छोड़ने को तैयार नहीं हैं, हालांकि उन्होंने कभी बातचीत की संभावना को खारिज भी नहीं किया है। सरकार भी एक ओर बातचीत के लिए खुद को तैयार बताती है दूसरी ओर कोई पहल नहीं करती। नक्सलियों को नेस्तनाबूद करने का ही दम भरती रहती है। ऐसे में शांति कैसे आएगी।
अब वक्त आ गया है कि सिविल सोसाइटी पहल करे। लोगों को इस मुद्दे पर जागरूक किया जाए। जनमत का दबाव हो तो नक्सलियों को भी मानना पड़ेगा और सरकार को भी एक कदम पीछे होना होगा। किसी की जिद नहीं चलेगी। शांति जरूरी है। शांति लाना है।
आदिवासी समाज करेगा नेतृत्व
नक्सल इलाकों की भाषा गोंडी है। गढ़चिरौली से लेकर तेलंगाना और छत्तीसगढ़ तक यही समुदाय इस हिंसा का सबसे ज्यादा शिकार हुआ है। विकल्प संगम में बुद्घिजीवियों के साथ बड़ी संख्या तेलंगाना, आंध्र, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के आदिवासी जुटे। तय किया गया कि शांति प्रक्रिया में आदिवासी ही नेतृत्व करेंगे। ग्राम स्तर पर पहल की जाएगी। पहली बार शांति प्रक्रिया में आदिवासियों को अधिकार देने की बात की गई।
बोडो आंदोलन से मिली सीख-
आयोजन में पूर्वोतर के राज्यों से भी आदिवासी प्रतिनिधि पहुंचे। आल बोडो स्टूडेंट यूनियन के लीडर प्रमोद बोरा ने बताया कि कैसे उनके सशस्त्र विद्रोह का हल निकला। राज्य भले नहीं मिला ऑटोनॉमस काउंसिल से कई अधिकार मिल गए। आदिवासी बड़ी संख्या में या तो मध्य भारत में हैं या पूर्वोत्तर के राज्यों में। तय हुआ कि दोनों तरफ के आदिवासी एक दूसरे की मदद करेंगे।
अशांति के कारणों पर हो चर्चा-
सरकार और माओवादियों के बीच कठिन मौकों पर मध्यस्थता कर चुके प्रोफेसर हरगोपाल ने बताया कि आंध्र में जब बातचीत शुरू हुई तो सरकार ने धोखा दे दिया। छत्तीसगढ़ में भी कलेक्टर के अपहरण के बाद जो वादे किए गए उन्हें नहीं निभाया गया। आदिवासियों ने कहा-बुद्घिजीवी अपना काम करें।
हिंसा से मुक्ति का आंदोलन हम खड़ा करेंगे। सर्व आदिवासी समाज के बीएस रावटे ने चिंता जताई कि बस्तर में निरपराध आदिवासी जेलों में हैं। तय किया गया कि उन कारणों पर बात हो जिनकी वजह से हिंसा का वातावरण है। आदिवासियों को मिले संवैधानिक अधिकारों को लागू कराने का दबाव माओवादियों पर भी बनाया जाए और सरकार पर भी।
तेलंगाना से रायपुर तक पदयात्रा करेंगे आदिवासी लीडर-
तेलंगाना के आदिलाबाद से आए आदिवासी नेताओं ने कहा कि नक्सलवाद उन्हीं के इलाके से बस्तर में आया। अब उनका इलाका तो शांत है पर उन्हीं के भाई बंधु बस्तर के आदिवासी संकट में हैं। आदिलाबाद के नेताओं ने कहा कि वे वहां से रायपुर तक पदयात्रा करेंगे। उन्हीं रास्तों से जंगल में घुसेंगे जिनसे माओवादी 1980 के दशक में यहां आए थे। आदिवासी गांवों की परंपरा के अुनसार मांझी, मुखिया, पटेल, पुजारी को इस आंदोलन की कमान सौंपी जाएगी।