छत्तीसगढ़ । युद्ध चाहे कोई भी हो, वह हमारी तैयारी, चौकसी और दूरदर्शिता की अग्निपरीक्षा लेने आता है। पूरी दुनिया की तमाम सरकारें कोरोना महामारी से चल रही भीषण जंग में यह अग्निपरीक्षा दे भी रही हैं। कोरोना से दो-दो हाथ करने के क्रम में भारत के प्रदर्शन को जहां दुनिया भर में सराहना मिल रही है, वहीं देश के छोटे और अपेक्षाकृत न्यून संसाधन वाले राज्य छत्तीसगढ़ के चर्चे भी चहुंओर हैं।
गोवा के अलावा पूर्वोत्तर के छोटे राज्यों को छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ देश का पहला प्रदेश है जो कोरोना के खतरे को उसके खोल में समेटकर सुरक्षित बाहर आने को तैयार है। पूरे राज्य में गिनती के मरीज ही अस्पताल में रह गए थे। हालांकि मंगलवार की रात झारखंड सीमा पर स्थित एक कोरोना जांच केंद्र से नौ श्रमिकों के पॉजिटिव आने की सूचना ने सरकार की पेशानी पर बल जरूर डाल दिए हैं। यह ठीक है कि ये श्रमिक झारखंड के हैं और महाराष्ट्र से चलकर अपने गृह प्रदेश जा रहे थे, लेकिन कोरोना भला भूगोल कहां देखता है।
चूंकि इनकी जांच छत्तीसगढ़ सीमा में हुई, लिहाजा नियम के मुताबिक अब इन्हें स्वस्थ होने तक यहीं रहना है। ऐसे में कोरोना पर छत्तीसगढ़ के जयघोष का मुहूर्त थोड़ा आगे टल गया है। साथ ही प्रदेश सरकार भी फिर से चौकस भी हो गई है। लंबे अंतराल के बाद अचानक से नौ मरीजों के सामने आने के बावजूद इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि कोरोना के खतरे से निबटने में अब तक छत्तीसगढ़ ने अपने संकल्प का प्रभावी प्रदर्शन किया है।
इसके तमाम पड़ोसी राज्य जहां आज भी कोरोना की मार से कराह रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ इससे लगभग उबरने के करीब है। दरअसल कोरोना की चुनौती से पार पाने के लिए प्रदेश सरकार ने युद्ध नीति के उन तमाम सूत्र वाक्यों पर अमल किया जिन पर चलकर दुश्मन को परास्त किया जाता है।
करीब डेढ़ माह पहले राजधानी रायपुर में इंग्लैंड से लौटी युवती के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने की सनसनीखेज सूचना पर सरकार के कान खड़े हो गए। इस बात का शायद भलीभांति अंदाजा लगा लिया गया कि अब क्षण भर की भी देरी खतरे को न्योता देने जैसा होगा। याद कीजिए कि एक ओर तो बीमार युवती को एम्स के कोरोना वार्ड में दाखिल कराया गया और दूसरी ओर उसके मोहल्ले समेत आसपास के तमाम इलाकों को सील कर दिया गया। मतलब कि संक्रमण रूपी दुश्मन को उसकी मांद में ही घेर लिया गया।
ध्यान रहे कि तब न तो जनता कर्फ्यू लगा था, न ही राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का एलान हुआ था। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि प्रदेश के नीति नियंताओं को यह बात अच्छी तरह पता थी कि कोरोना जैसे अदृश्य दुश्मन के दांत खट्टे करने के लिए शारीरिक दूरी, आइसोलेशन, क्वारंटाइन और लॉकडाउन जैसे हथियार आज नहीं तो कल पूरे देश दुनिया को आजमाने ही होंगे।
निश्चित रूप से शासन के इस दूरदर्शी फैसले ने अपना असर दिखाया। बाद में लॉकडाउन के दौरान भी निरोधात्मक उपायों पर सख्ती से अमल किया गया। इस दौरान देश भर से आए दिन भीड़ जुटने और शारीरिक दूरी के नियम टूटने की खबरें आती रहीं, लेकिन छत्तीसगढ़ ने सब्र और एहतियात का दामन नहीं छोड़ा। बात तैयारियों की करें तो समय रहते रायपुर के जगदलपुर और बिलासपुर में कोरोना अस्पतालों की चाक-चौबंद व्यवस्था की गई। संदिग्धों की जांच में तेजी लाई गई और इन सबके ऊपर राजधानी स्थित एम्स ने पूरे चिकित्सा इंतजाम और उपायों पर चौबीसों घंटे निगरानी बनाए रखी।
संकट के दौर में रायपुर एम्स ने जिस तरह अपने समर्पण, विशेषज्ञता और कर्तव्य परायणता का परिचय दिया, वह वाकई काबिले तारीफ है। शायद यही कारण है कि सार्क यानी दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन के सदस्य देशों ने रायपुर एम्स से कोरोना को पराजित करने के गुर सीखे। इसी प्रकार निर्णय लेने के मोर्चे पर भी शासन ने तत्परता दिखाई। चीन में तैयार रैपिड टेस्टिंग किट को लेकर मचे हो-हल्ले के बीच राज्य सरकार ने अलग ही रास्ता अपनाया।
बिना वक्त गंवाए दक्षिण कोरिया की एक कंपनी को किट आपूर्ति का ऑर्डर दिया गया। यह फैसला भी सही साबित हुआ। झारखंड की सीमा में दाखिल होने से ऐन पहले नौ लोगों में संक्रमण की पुष्टि इन्हीं कोरियाई किटने की। इस बात में भी कोई संदेह नहीं कि कोरोना संकट के इस दौर में प्रदेश के पुलिस और सफाईकर्मियों की अनवरत साधना ने भी कठिन दिख रहे लक्ष्य को आसान बनाया।
जहां तक प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का प्रश्न है तो फिलवक्त यह कहा जा सकता है कि उन्होंने मिशन कोरोना के इस पूरे अभियान की बागडोर अब तक बखूबी संभाल रखी है। यह ठीक है कि कोरोना पर पूर्ण विजय का शंखनाद बाकी है, लेकिन जंग की अब तक की कहानी प्रदेश सरकार और जनता के संकल्प और समर्पण की दास्तान है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कोरोना पर शीघ्र ही विजयश्री प्राप्त कर ‘छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया’ का नारा फिर से बुलंद होगा।