रायपुर. चेहरे पर झुर्रियां, आंखों पर नजर का चश्मा। उम्र करीब 72 वर्ष। भीख मांगकर अपना और अपनी दो नातिन का न केवल भरण पोषण करती है, बल्कि दोनों नातिन की पढ़ाई-लिखाई भी करा रही है। बड़ी नातिन 16 साल की है जो ग्यारहवी में पढ़ रही है और छोटी दस साल की है। घर में कोई कमाने वाला नहीं है। उम्र भी इतनी नहीं कि मजदूरी कर भरण पोषण कर सके। लिंगियाडीह की सुखमति बीते एक दशक से भीख मांगकर गुजर बसर कर रही है। सुखमति की संवेदनशीलता ऐसी कि कोरोना के मौजूदा दौर में कोई गरीब भूखे पेट न सोए इसलिए वर्षों से दाना-दाना इकठ्ठा किए चावल का दान कर दिया है।
संक्रमण के दौर में व्यवसायी से लेकर समाजसेवियों की लंबी फेहरिस्त है जो बढ़ चढ़कर दान कर रहे हैं। भोजन करा रहे हैं। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री राहत कोष में हजारोंं लाखों दान कर रहे हैं। लेकिन सुखमति का जिक्र इसलिए कि इनका उद्देश्य हर कोई से एकदम जुदा है। सुखमति को खुद ही मदद की दरकार है। इसकी चिंता किए बगैर उन्होंने समाज के सामने अनोखा उदाहरण पेश किया है। लिंगियाडीह के पार्षद व जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केशरवानी बीते एक पखवाड़े से अपने वार्ड में गरीबों की मदद कर रहे हैं।
लिहाजा सुखमती ने अपने परिचितों के माध्यम से विजय से मिलने की इच्छा जताई। वार्ड के कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने जिलाध्यक्ष को इस बारे में बताया। जब जिलाध्यक्ष सुखमति के दरवाजे पहुंचे और उनकी बात सुनी तो अवाक रह गए। दरअसल सुखमति ने भीख मांगकर घर-घर से दाना-दाना इकठ्ठा किए चावल का दान करने की बात कही। वे यह कहने भी नहीं चूकी कि गरीबों को दो वक्त का भोजन अगर मुहैया हो जाता है तो इससे बड़ा उपकार उनके लिए और कुछ भी नहीं हो सकता। सुखमति ने विजय से कहा कि वे ही एक अच्छा माध्यम बन सकते हैं। उन्होंने भरोसा भी जताया कि उनके द्वारा दिए गए अन्न के एक-एक दाना का सदुपयोग उनके जरिए होगा।
कपड़े भी दिए दान में
सुखमति ने एक क्विंटल चावल के अलावा साड़ियां भी दान कर दी हैं। उनका कहना है कि गरीबी और भुखमरी को उसने करीब से देखा है। वर्तमान दौर संकट से कम नहीं है। लोगों को कोई काम नहीं मिल रहा है। इसलिए उनके द्वारा दिए गए अन्न और कपड़ा दान का उपयोग गरीबों के बीच हो तो उनका जीवन धन्य हो जाएगा।