: दण्डामी जनजाति की आबादी छत्तीसगढ़ में धीरे धीरे कम हो रही है।
छत्तीसगढ़ में बस्तर की संस्कृति और परम्परा को बरकरार रखने वाले
तथा अदम्य साहस का परिचय देने वाले दण्डामी माड़िया जनजाति की नस्ल धीरे – धीरे कम होती जा रही है,
इसलिए अबूझमाड़ के क्षेत्र में इस जाति को बचाने के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगाया गया है।
आधिकारिक जानकारी के अनुसार बस्तर जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र में घने जंगलों वाले
पहाड़ों के बीच रहने वाले आदिवासी जिन्हें बाकी दुनिया के लोग
आज भी अबूझ और अनजान मानते हैं, वह है दण्डामी आदिवासी प्रजाति।
सरकार ने 1972 से परिवार नियोजन कार्यक्रम से अबूझमाड़ को
अलग रखा है। इसके बावजूद भी दण्डामी माड़िया जनजाति की संख्या में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है ।
1991 की जनगणना के अनुसार अबूझमाड़ की जनसंख्या 27022 बताई गई है ।
जिसमें 13 हजार 22 महिला तथा 14 हजार पुरूष शामिल हैं।
लेकिन 2001 की जनगणना के अनुसार इनकी संख्या तीन हजार
और कम होने के साथ 24416 जनसंख्या बतायी गई ।
इस तरह दस साल में तीन हजार की जनसंख्या कम हुई है,
हालाकि कुछ गांव अब दंतेवाड़ा जिले में शामिल हो गये हैं। पर स्थिति जस की तस बनी हुई है ।
अबूझमाड़ क्षेत्र में बाहरी व्यक्ति के प्रवेश पर भी प्रतिबंध है। पर्यटनविद डॉ सतीश के अनुसार अबूझमाड़ी बड़े परिवार और संयुक्त परिवार में नहीं रहते ।
उन्होने बताया कि बीहड़ों में कुपोषण के शिकार अपने जीवन में ये मरूस्थल से कम पीड़ा नहीं भोगते ।
पानी और खेत जाने के लिए पहाड़ को पार करना पड़ता है। अधिक परिश्रम के कारण आम शहरी से इनकी औसत उम्र भी कम होती है।
50- 55 वर्ष तक की इनकी आयु होती है।
इसके साथ ही सेक्स के प्रति इनमें कम लगाव होता है। इनकी जनसंख्या कम होने का यह भी एक कारण है ।
डॉ सतीश ने बताया कि अबूझमाड़ियों में विपरित लिंग के प्रति भी आकर्षण कम है।
क्यों कि बचपन से घोटुल जाने के आदि हैं, जहां युवक युवतियां रोज शाम को इक्कटा होते हैं जहां उन्हें नयापन नहीं लगता।