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छत्तीसगढ़ /हुर्रा के एनकाउंटर के बाद जवान भाई ने कहा- मैं होता तब भी उसे गोली ही मारता

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 कुन्ना डब्बा में शुक्रवार सुबह हुई मुठभेड़ में 5 लाख रुपए का इनामी नक्सली हुर्रा मारा गया। नक्सली हुर्रा की मौत के बाद डीआरजी में पदस्थ हवलदार भाई सोमारू कड़ती ने कहा कि वह मेरे बड़े पिताजी का लड़का था। उसने नक्सल संगठन ज्वाइन किया, मैंने पुलिस की नौकरी को चुना। कई बार उसने पुलिस की नौकरी छोड़ने का मुझ पर दबाव बनवाया तो मैंने उसे नक्सल संगठन छोड़ने का। 

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लेकिन वो माना नहीं। उसके धमकी देने पर मेरा यही जवाब रहता कि जंग के मैदान में आमना-सामना हो गया तो न तो उसकी गोली मुझे और न ही मेरी गोली उसे पहचानेगी। आज जब एनकाउंटर हुआ तो टीम में मैं शामिल जरूर नहीं था, लेकिन यदि मैं होता तब मैं भी यही करता। मैं हर ऑपरेशन में शामिल रहा हूं। आज मुझे इस बात का अफसोस है कि इस एनकाउंटर में मैं नहीं था। 

2017 में आउट ऑफ टर्न भी मिल चुका 
दरअसल, सोमारू मदाडी के रहने वाला है, जबकि नक्सली हुर्रा समलवार का। सोमारू साल 2014 को पुलिस में भर्ती हुआ था। डीआरजी टीम में शामिल है। मार्च 2017 को बुरगुम में हुए एनकाउंटर में नक्सलियों को ढेर करने पर आउट ऑफ टर्न भी मिल चुका है। अभी वह डीआरजी में हवलदार हैं। एसपी डॉ अभिषेक पल्लव व डीआरजी के आरआई वैभव मिश्रा ने बताया कि सोमारू आज किसी कारण वश एनकाउंटर में शामिल नहीं हो पाया था। कर्तव्य के प्रति ईमानदारी हमेशा देखने को मिलती है। औरों के लिए बड़ी प्रेरणा है। 

धमकी मिली फिर भी मैंने नौकरी को ही चुना 
हुर्रा साल 2005-06 से नक्सली संगठन से जुड़ा था। हम दोनों भाई के साथ-साथ अच्छे मित्र भी थे। हम बचपन मे साथ मे खेलते थे। मेरे स्कूल के कपड़े वह पहनता था। मैंने जब पुलिस की नौकरी शुरू की तब उसकी धमकियां मुझे मिलती थीं कि मैं तय कर लूं कि मुझे मां-बाप चाहिए या नौकरी। उसकी धमकियों के बाद भी मैं डरा नहीं। क्योंकि मेरा जुनून शुरू से देश सेवा का रहा है। जब से मैं नौकरी में आया हूँ, घर ही नहीं गया। माता- पिता मुझसे मिलने दंतेवाड़ा आ जाते हैं। हुर्रा दो भाई हैं। हुर्रा ही सबसे खूंखार रहा है। अगर एक जवान होने के नाते कहूं तो उसकी मौत पर गम नहीं है। लेकिन भाई के मारे जाने का दर्द है। 

उसकी अंत्येष्टि में शामिल होने के सवाल पर सोमारू ने कहा कि भाई होने के नाते मुझे शामिल होना चाहिए, लेकिन सुरक्षागत कारणों से मैं नहीं जाऊंगा। मेरे गांव के आसपास के जितने भी मेरे बचपन के साथी हैं, जो अब नक्सल संगठन में शामिल हैं। इनमें चोलनार की लक्खे, गुदरु, आलनार का जोगा, हिरोली से भी कुछ लोग हैं, उनसे मैं यही कहूंगा कि अब भी समय है, मुख्य धारा में लौट आओ, यहां रहकर पुलिस की नौकरी करो। एनकाउंटर में जब भी सामना हुआ हुर्रा की तरह मारे जाओगे। उस वक्त मेरी गोली तुम्हें नहीं पहचानेगी कि हम कभी मित्र रहे हैं।