आज हम आपको हिंदुस्तान की सीमा पर बसे कोयांक आदिवासियों के लोंगवा गांव के सम्बन्ध में बताने जारहें हैं, जो आधा भारत में है एवं आधा म्यामांर में है। एक और विशेष बात की सदियों से इन लोगों के मध्य दुश्मन का सिर काटने की प्रथा चल रही थी, जिस पर साल 1940 में प्रतिबंध लगाया गया।
लोंगवा, नागालैंड के मोन जिले में घने जंगलों के मध्य म्यांमार सीमा से सटा हुआ हिंदुस्तान का अंतिम ग्राम है। यहां कोंयाक आदिवासी निवास करते हैं। इन्हें काफी ही खूंखार माना जाता है। अपने कबीले की सत्ता एवं जमीन पर कब्जे हेतु वो अक्सर पड़ोस के गांवों से लड़ाइयां किया करते थे।
साल 1940 में लगी हेड हंटिंग पर रोक
हत्या या फिर दुश्मन का सिर धड़ से भिन्न करने को यादगार घटना माना जाता था एवं इस सफलता का जश्न चेहरे पर टैटू बनाकर मनाया जाता था।
हासिल है दोहरी नागरिकता
– साल 1970-71 में लोंगवा ग्राम के मध्य से बॉर्डर गुजरा था। भारत-म्यांमार सीमा पर होने की वजह से यहां के लोगों को तकनीकी तौर दोनों ही देशों की नागरिकता प्राप्त हुई है।
– ऐसे में इन्हें म्यांमार जाने हेतु न तो वीजा की आवश्यकता होती है एवं न ही भारतीय पासपोर्ट की।
– यहां के लोग दोनों ही देशों में आजादी से घूम सकते हैं।
आधुनिकता से अभी भी दूर
बता दें कि, कोंयाक झोपड़ियां मुख्य रूप से बांस की बनी होती हैं। ये बहुत बड़ी होती हैं और इनमें अनेक भाग होते हैं, जैसे रसोई, खाना खाने, सोने और भंडारण हेतु भिन्न-भिन्न स्थान।
आधुनिक सभ्यता से हालांकि लोंगवा अब भी बहुत दूर है, लकड़ी के घर तथा छप्पर एक सुंदर संग्रह हैं, किन्तु कहीं-कहीं टिन की छतों और कंक्रीट का निर्माण परिवर्तन की कथा का संकेत दे रहे हैं।