जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर ग्राम मेटापाल में नौनिहालों का भविष्य अतिरिक्त कक्ष में तैयार हो रहा है। यहां के स्कूल भवन बाहर से देखने पर मजबूत और आकर्षक हैं लेकिन भीतर छत और दीवार की हालत जर्जर है। ऐसे में शिक्षक बच्चों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त कक्ष में पढ़ाई करवा रहे हैं।
सरकार की मंशानुरूप स्कूलों के प्रति बच्चों का आकर्षण बढ़ाने मध्यान्ह भोजन से लेकर खेलकूद और अन्य गतिविधियां कराई जाती हैं। प्रवेशोत्सव के जरिए तिलक लगाकर पाठ्यसामग्री और गणवेश भी दिया जा रहा है लेकिन मेटापाल गांव के तीन पारा में स्थित अलग- अलग प्राथमिक स्कूलों की हालत दयनीय है। यहां तुर्रेम पारा, पटेलपारा और पेरमा पारा में स्कूल हैं। सत्र के शुरूआती दिनों में यहां के प्रत्येक स्कूल में बच्चों की दर्ज संख्या 20- 25 के बीच है लेकिन उपस्थिति इसकी आधी बनी हुई है। शिक्षकों का कहना है कि बच्चों को स्कूल लाने प्रयास कर रहे हैं। इन सबके बीच दुखद पहलू यह है कि गांव के तीनों प्राथमिक शालाओं को बाहर से देखने पर रंग-रोगन से भव्यता नजर आती है पर भवन के भीतर की हालत जर्जर हो चुकी है। दीवारों में दरार और प्लस्तर उखड़ चुके हैं तो छत से पानी टपकने के साथ मलबा भी गिरता है। ऐसे में शिक्षक बच्चों के जान की परवाह करते अतिरिक्त कक्ष में एक साथ बिठाकर पढ़ा रहे हैं। यह स्थिति इसी सत्र में बनी है ऐसी बात नहीं है। पिछले सत्र में भी स्कूल भवन में पानी और प्लस्तर टपक रहा था। इसी के चलते अतिरिक्त कक्ष में क्लास लगाई जा रही है।
मेटापाल के प्राथमिक शालाओं के जर्जर भवन की जानकारी जनप्रतिनिधि से लेकर अधिकारियों तक को है। निरीक्षण में पहुंचने वाले अधिकारी नए भवन निर्माण का आश्वासन देकर लौटते हैं। पटेल पारा स्कूल के शिक्षक नीलमणि नेताम का कहना है कि निरीक्षण के दौरान सभी अधिकारी भवन निर्माण कराने की बात कहते हैं। नेताम के अनुसार वे लिखित शिकायत भी कई बार कर चुके हैं। तीन साल से जर्जर भवन है। शिक्षक के मुताबिक पिछले विधानसभा चुनाव के पहले पहुंचे तत्कालीन कलेक्टर सौरभ कुमार ने खुद नया भवन बनवाने की बात कही थी। साथ आए अधिकारियों को प्रस्ताव तैयार करने कहा था पर आज भी भवन जस का तस है।
पंच मन्नूराम कहते हैं कि वे पंचायत की ओर से कई बार जिला पंचायत सीईओ और कलेक्टर के नाम पत्र लिख चुके हैं। दौरा पर आने वाले अधिकारी और नेताओं से भी स्कूल भवन की चर्चा होती है। सभी कहते हैं जर्जर भवन में बच्चों को मत पढ़ाओ, नई बिल्डिंग बनाई जाएगी। यह बात जितनी आसानी से अधिकारी और नेता कहते हैं, उतनी जल्दी भूल जाते हैं। भवन की जर्जर हालत को देखते अब बच्चों को स्कूल भेजने की इच्छा भी ग्रामीणों की कम हो रही है।
‘कुछ स्कूल भवनों की स्थिति ठीक नहीं है। उनके मरम्मत के लिए उच्चाधिकारियों से पत्राचार चल रहा है। अनुमति मिलने पर मरम्मत कराई जाएगी। बच्चों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त व्यवस्था की गई है।’