देश-दुनिया की निगाह आज बस्तर पर टिकी हुई है। वजह, आज यहां लोकतंत्र का महापर्व जो मनाया जा रहा है। लोकसभा चुनाव में मतदान चल रहा है। बस्तरिया इसे वोट तिहार यानी वोट देने वाला त्यौहार कहते हैं। छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश में लाल आतंक यहीं ज्यादा है। नक्सलियों की पूरी कोशिश रही है कि वे इस चुनाव को न होने दें। यही वजह है कि मतदान के दो दिन पहले ही उन्होंने एक हमले में दंतेवाड़ा के विधायक भीमा मंडावी की हत्या कर दी। सोचा, दहशत के चलते चुनाव रुक जाएगा।
ऐसा नहीं भी हुआ तो लोग मतदान केंद्रों तक नहीं पहुंचेंगे। लेकिन यहां नक्सलियों की सोच के बिल्कुल उल्टा हो रहा है। निर्वाचन आयोग ने भी दृढ़ता का परिचय देते हुए आज मतदान करा रहा है। इससे भी ज्यादा बहादुरी यह कि यहां के सीधे व सरल आदिवासी साहस का परिचय देते हुए मतदान केंद्रों तक पहुंचकर नक्सली चुनौतियों को सीधे स्वीकार रहे हैं। आदिवासियों के इस साहस को लोकतंत्र भी सलाम कर रहा है।
तीन घंटे पहले ब्लास्ट, दो घंटे में ही 15 फीसद वोटिंग
बस्तर के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिले नारायणपुर में गुरुवार की सुबह चार बजे यानी मतदान के तीन घंटे पहले नक्सलियों ने दहशत फैलाने और पोलिंग पार्टी को निशाना बनाने के लिए फरसगांव के छिनारी मतदान केंद्र के पास आइईडी ब्लास्ट किया। इस वक्त पोलिंग पार्टियां इस रास्ते से गुजर रही थीं, लेकिन चपेट में आने से बच गईं। यह खबर आसपास के क्षेत्रों में तेजी से फैली भी। लेकिन ग्रामीणों का हौसला है कि वे छिनारी मतदान केंद्र पहुंचे। सुबह नौ बजे तक यहां 15 फीसद हुआ मतदान बता रहा है कि यहां के मतदाताओं ने नक्सलियों के खौफ को धता बता दिया है।
पेड़ काटकर मार्ग किया बाधित, लेकिन रोक न पाए
चुनाव को प्रभावित करने के लिए नक्सली आज सुबह से ही जुटे हुए हैं। सुकमा जिले के दोरनापाल-जगरगुंडा मार्ग पर देवरपल्ली के पास बुधवार की रात नक्सलियों ने पेड़ काटकर मार्ग को बाधित कर दिया था, जिससे लोग मतदान करने के लिए न जा सकें। गुरुवार सुबह जवानों ने पेड़ को हटाकर मार्ग बहाल किया।
नक्सलियों के मंसूबों पर आदिवासियों ने फेरा पानी
लोकसभा चुनाव को रुकवाने व प्रभावित करने नक्सलियों ने कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। महीनेभर पहले से ही वे गांव-गांव में बैठकें ले रहे थे। ग्रामीणों को चुनाव का बहिष्कार करने की धमकियां दे रहे थे। बात न मानने पर जिंदगी से हाथ धोने की चेतावनी दे रहे थे। जगह-जगह बैनर-पोस्टर टांगकर भी वे चुनाव के बहिष्कार का आह्वान कर रहे थे। लेकिन आज बस्तर में जिस उत्साह के साथ मतदान हो रहा है, उससे नक्सलियों के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
हफ्तेभर पहले से ही नक्सलियों ने बढ़ा दी थी सक्रियता
चुनाव को प्रभावित करने के लिए नक्सली हफ्तेभर पहले ही सक्रिय हो चुके थे। 4 अप्रैल को कांकेर जिले के पखांजूर के माहला के जंगल में फोर्स पर हमला किया था। इसमें बीएसएफ के एक एएसआइ समेत चार जवान शहीद हुए थे। इसके ठीक दूसरे दिन 5 अप्रैल को धमतरी जिले के नगरी-सिहावा क्षेत्र के ओडिशा सीमा से लगे खल्लारी के साल्हेभाट जंगल में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के जवानों पर हमला बोला था।
इसमें एक जवान शहीद व एक घायल हुआ था। फिर 7 अप्रैल को राजनांदगांव जिले के नक्सल प्रभावित मानपुर से तीन किलोमीटर दूर क्वासफड़की गांव की पुलिया के पास नक्सलियों ने बारूदी विस्फोट किया था। इसमें आइटीबीपी के प्रधान आरक्षक श्रीनिवास गंभीर रूप से घायल हुए थे। इस दिन मुख्यमंत्री बघेल की सभा भी होने वाली थी। इस घटना के बाद सुरक्षा के चलते सीएम की सभा डेढ़ घंटे देर से शुरू हुई थी।