बात निकली तो फिर दूर तलक जाएगी…ये तो हमने सुना था, लेकिन इतनी दूर तक जाएगी, ये अंदाजा कतई नहीं था. मामला शुरू हुआ था जनेऊधारी हिंदू ब्राह्मण पं. राहुल गांधी से, लेकिन जाने कब ये सब हनुमानजी तक जा पहुंचा. भई अब तो योगीजी और तुलसीदास को आमने-सामने होना चाहिए, क्योंकि तुलसीदास की सैकड़ों साल पहले लिख गए कि-
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै, कांधे मूंज जनेऊ साजै।
तुलसी की मानें तो हनुमानजी जनेऊ धारण करते थे और योगी की मानें तो हनुमान जी दलित थे (दलित जनेऊ पहनते हों, ऐसा कम से कम मेरे देखने या सुनने में तो नहीं आया है).
अब तुलसीदासजी तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं नहीं, जो उनकी बात को हम सच मानें. तो भैया, योगीजी को ही सही मान लेने में भलाई है. ज्ञानियों से सुनते रहे हैं कि लंकापति रावण ब्राह्मण था और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया था. योगीजी इसमें भी यदि कोई संशोधन हो तो कृपया ज्ञानवर्धन कीजिएगा.
क्या पता योगीजी की इस नई खोज के आधार पर कोई शोधार्थी ‘ब्राह्मण और क्षत्रियों के युद्ध में दलितों की भूमिका : रामायण के विशेष संदर्भ में’ शीर्षक लेकर थीसिस भी लिख डाले. इन्हीं के एक साथी माता सीता को पहले ही टेस्ट ट्यूब बेटी बता ही चुके हैं. रावण का पुतला तो हम हर साल ही जलाते है, क्या पता योगीजी के खुलासे के बाद बजरंग बली की पूंछ में आग लगाने के जुर्म में उस पर एट्रोसिटी एक्ट की धाराएं और जोड़ दी जाएं.
नई जानकारी ये भी है कि हनुमानजी दलित के साथ ही वंचित भी हैं. बजरंग बली को हम सब हमेशा से ‘अतुलित बल धामा’, ‘अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता’ के रूप में जानते हैं. जिसका नाम लेने से ही हमारे कष्ट और संकट कट जाते हैं, असल में वे स्वयं भी वंचित हैं. शायद तुलसीदास ने हमें हनुमान चालीसा के जरिये कुछ गलत जानकारी दे दी थी. हो सकता है कि योगीजी तुलसीदास के हनुमान चालीसा को रद्द कर योगीदास का नया हनुमान चालीसा ही जारी कर दें.
सुंदरकांड हो या अखंड रामायण, दुर्गा सप्तशती हो या गीता पाठ हो, शायद ही किसी के मन में ये सवाल आता हो कि जिस देवी या देवता की आराधना की जा रही है, वह कौन सी जाति का है, लेकिन योगीजी की नायाब खोज के बाद मैं इस बात पर विचार करने पर विवश हूं कि बम भोले शिवशंकर किस जाति के होंगे..? माता पार्वती से उनके विवाह में जाति तो आड़े नहीं आई होगी..? यादव कुल में पले-बढ़े श्रीकृष्ण को उत्तर प्रदेश सरकार ओबीसी का सर्टिफिकेट कब दे रही है. मां दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती का जाति प्रमाण पत्र मिल जाता तो पूजा करने में और भी सहूलियत हो जाती.
हमारे देश में सांसद से लेकर पार्षद तक को चुने जाने में उसकी जाति की बड़ी अहमियत होती है. राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री से लेकर ग्राम पंचायत का प्रतिनिधि कौन जात है…एससी है, एसटी है, ओबीसी है या सवर्ण है…? यादव, भूमिहार, बामन, बनिया है या राजपूत है…इन बातों का महत्व उसके द्वारा किए गए कामों या उसके निकम्मेपन से कहीं ज्यादा होता है.