श्रीगणेश एवं परशुराम की युद्धस्थली
दक्षिण बस्तर के भोगामी आदिवासी परिवार अपनी उत्पत्ति ढोलकट्टा की महिला पुजारी से मानते हैं। क्षेत्र में यह कथा प्रचलित है कि भगवान गणेश और परशूराम का युद्ध इसी शिखर पर हुआ था। युद्ध के दौरान भगवान गणेश का एक दांत यहां टूट गया। इस घटना को चिरस्थाई बनाने के लिए छिंदक नागवंशी राजाओं ने शिखर पर गणेश की प्रतिमा स्थापति की। चूंकि परशूराम के फरसे से गणेश का दांत टूटा था, इसलिए पहाड़ी की शिखर के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखा। यह स्थल बचेली वन परिक्षेत्र के फूलगट्टा वन कक्ष अंतर्गत है। समुद्र तल से इस शिखर की ऊंचाई 2994 फीट है।
उपेक्षित रहा यह देवस्थल
ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा से करीब 18 किलोमीटर दूर फरसपाल जाना पड़ता है। यहां से कोतवाल पारा होकर जामपारा तक पहुंच मार्ग है। जामपारा में वाहन खड़ी कर तथा ग्रामीणों के सहयोग से शिखर तक पहुंचा जा सकता है। जामपारा पहाड़ के नीचे है। यहां से करीब तीन घंटे पैदल चलकर पहाड़ी पगडंडियों से होकर ऊपर पहुंचना पड़ता है। बारिश के दिनों में पहाड़ी नाला बाधक है। वहीं मच्छरों से भी लोगों को परेशानी होती है। बीते चार वर्षो में ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए पर्यटन विभाग से लेकर जिला प्रशासन दंतेवाड़ा तक कई घोषणाएं की गई पर न पगडंडियों को दुरुस्त किया गया न ही छत्तीसगढ़ में सबसे ऊंचे स्थल पर विराजमान दुर्लभ गणेश प्रतिमा को प्रचारित करने का प्रयास किया गया। ग्रामीण युवकों की मदद से ही लोग वहां पहुंच पाते हैं।
खतरा मंडरा रहा दुर्लभ प्रतिमा पर
बैलाडीला की पहाड़ियों को लौह अयस्क के कारण कई कंपनियों को लीज पर दिया गया है। बैलाडीला की पहाड़ियों का सर्वे करने वाले भू-गर्भ शास्त्री डॉ. क्रूकसेंक ने अपने सर्वे रिपोर्ट में लिखा है कि बैलाडीला की पहाड़ियों में कई दुर्लभ प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं। इसके बावजूद भी बैलाडीला की पहाड़ियों में पुरातात्विक महत्व को नजर अंदाज करते हुए पहाड़ियों को लीज पर दिया गया है। लौह अयस्क की खुदाई प्रारंभ हुई तो ढोलकल जैसे शिखर नष्ट हो जाएंगे, वहीं पुरातात्विक संपदाओं का भी लोप हो जाएगा।