बीजेपी तीन चुनावी राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत कौ सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी अपने सासंदों और केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में उतार रही है तो वही शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह जैसे क्षेत्रीय तैयार है.
बीजेपी के सामने कर्नाटक की हार का सबक भी है जहां उसे बी एस येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाने का ख़ामियाज़ा उठाना पड़ा था. ऐसे में लोकसभा चुनाव के ठीक पहले होने वाले इन राज्यों में बीजेपी फूंक फूंक कर कदम रख रही है.
बीजेपी ने सामूहिक नेतृत्व में पीएम मोदी के चेहरे के साथ चुनाव में जाने का ऐलान किया है. नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते जैसे केंद्रीय मंत्रियों समेत सांसदों को विधानसभा का टिकट थमा कर बीजेपी ने संदेश दिया है कि उसके पास राज्य में सीएम चेहरे की कमी नहीं है.
बीजेपी सीएम को लेकर मप्र में शिवराज सिंह चौहान को केंद्र की राजनीति में लाया जाएगा. पार्टी को इसमें कोई दिक़्क़त भी नही होगी, बीजेपी के लिए मध्यप्रदेश संगठन के लिहाज से बहुत मजबूत राज्य है.
शिवराज की जगह अगर बीजेपी किसी और को सीएम बनाएगी तो कार्यकर्ताओं को कोई फ़र्क़ नही पड़ेगा, क्योंकि मध्यप्रदेश में पार्टी जिसे सीएम तय करेगी उसे कार्यकर्ता सहर्ष स्वीकार करते हैं. बाबुलाल गौर की जगह जब बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को सीएम पद की कमान दी थी तो कार्यकर्ताओं ने उनको स्वीकार किया था.
राजस्थान में बीजेपी के पास वसुंधरा राजे से बड़ा चेहरा नहीं है. बसुंधरा ही एक मात्र नेता है जिसकी पूरे प्रदेश में पहचान है जो पार्टी को राजस्थान में वोट दिलाने का माद्दा रखता हो. ऐसे मे बीजेपी आलाकमान भी जानता है की वसुंधरा के बिना राज्य में पार्टी जीत की दहलीज पर नहीं पहुंच सकती लिहाजा पार्टी उनको कैसे साथ लेकर चलेगी ये बड़ा सवाल है क्योंकि वसुंधरा को नाराज करने से 2024 का चुनाव फंसने का डर है.
बीजेपी के स्थानीय नेताओं की तमाम कोशिशों के बाद भी वसुंधरा कमजोर नहीं हुई है इसकी वजह है कि पार्टी और जनता का एक बड़ा वर्ग वसुंधरा के साथ मजबूती से खड़ा है. बतौर सीएम वसुंधरा राजे कभी बीजेपी आलाकमान और राष्ट्रीय नेताओं का कोई दबाव नहीं माना.
बीजेपी को छत्तीसगढ़ में नो रिपीट फार्मूला लागू करने में कोई दिक़्क़त नहीं आएगी. आज छत्तीसगढ़ में बीजेपी चेहरे की कमी से जूझ रही है. रमन सिंह आज बीजेपी के लिंए मजबूरी नहीं रह गए है. रमन सिह तीन बार मुख्यमंत्री भले रह चुके हैं, बड़े नेता है पर पार्टी के सीएम फेस नहीं है. वजह है सक्रियता की कमी.
बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में अरूण साव, नारायण चंदेल जैसे नई लीडरशिप खड़ी करने की कोशिश की पर इनका कद ऐसा नहीं बन पाया कि इनके नाम को प्रदेश के एक छोर से दूसरे छोर के कार्यकर्ता जानते हों. मौजूदा सीएम भूपेश बघेल के खिलाफ सांसद विजय बघेल को उतारकर ज़रूर पार्टी ने मुकाबले को दिलचस्प बनाने की कोशिश की.
महिला नेताओं में सरोज पांडेय है जिनकी छवि एक आक्रामक और तेज तर्रार नेता की है. बृजमोहन अग्रवाल राज्य में पार्टी के बड़े चेहरे हैं पर केंद्रीय नेतृत्व से संबंध मधुर नहीं होने के कारण साईडलाईन हैं. ऐसे मे अगर राज्य में सरकार बनती है तो पार्टी को नया चेहरा मिलेगा.