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PM मोदी लोगों से कैसे जुड़े कि जन्मदिन भी बन गया आम लोगों का खास दिन?

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संकेतों की राजनीति के मास्टर हैं. वे देश के किसी भी कोने में जाते हैं तो अपनी वेश-भूषा, बोली-भाषा से उन पर एक अलग छाप छोड़ते हैं. जब वे असम में जाकर वहां की टोपी और गमछा गले में डालकर मंच पर पहुंचते हैं तो उन्हें अपना बना लेते हैं.

तमिलनाडु की धरती पर जाकर वे तेलुगू-तमिल में भाषण की शुरुआत करते हैं तो एक अलग सा रिश्ता बनता है. वही, पीएम पंजाब में जाकर पगड़ी बांधे दिखते हैं बिहार में जाकर भोजपुरी में संवाद करते हैं तो बरबस उनके प्रति आम लोगों का प्यार उमड़ पड़ता है. उनकी कामयाबी में ये संकेतक बड़े उपयोगी हैं.

पीएम मोदी आज अपना 73वां जन्मदिवस मना रहे हैं. 26 मई साल 2014 को पीएम पद की शपथ लेने के बाद से वे अपने जन्मदिन को संकेतों में ही मनाते आ रहे हैं. कभी दिव्यांग जन के साथ तो कभी छात्रों के साथ. कभी शहीद स्मारक जाकर शीश झुकाते हैं तो मुस्लिम समुदाय के साथ अपना 72वां जन्मदिन मनाते हैं.

यूं तो लोगों से रिश्ता बनाने का काम उन्होंने सरकार बनाने से पहले ही तेजी से शुरू कर दिया था, तभी स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार भाजपा पूर्ण बहुमत से जीत कर केंद्र की सत्ता में आई थी.

जनसेवा के नाम रहा जन्मदिन

खुद जन्मदिन पर पीएम साल 2022 में जन्मदिन पर नामीबिया से लाए गए चीतों को कूनो पार्क में छोड़ा तो अहमदाबाद में मुस्लिम समुदाय के साथ 72 किलोग्राम का केक काटा. साल 2021 में कोरोना का समय था तो 2.26 करोड़ टीके जन्मदिन पर लगाए गए. साल 2020 में देश कोरोना से कराह रहा था तो मोदी ने जन्मदिन पर सबके स्वास्थ्य की बातें की लेकिन किसी तरह का जश्न नहीं मनाया गया. हां, पार्टी ने सेवा सप्ताह के रूप में इस खास दिवस को मनाया.

2019 में पीएम मां से मिलकर उनका आशीष लिया तथा आम छात्रों से मिले. उन्हें उपहार दिया. उसके पहले वे वाराणसी में थे. आम लोगों के साथ जन्मदिन मनाया. स्टूडेंट्स से मिले. साल 2016 में पीएम ने जन्मदिन दिव्यांग जन के साथ मनाया और बाद में छात्रों से मिले. साल 2014 में मां से उपहार स्वरूप मिले पांच हजार एक रुपए कश्मीर में बाढ़ राहत कोष में दान कर दिया. यह सब उनकी सांकेतिक राजनीति करने के तरीके के रूप में देखा जाएगा.

इस तरह से देखने पर एक बात पता चलती है कि मोदी खुद जन्मदिन पर किसी बहुत बड़े आयोजन में शामिल नहीं होते लेकिन जहां जाते हैं, जिनके साथ मनाते हैं,उनके सामाजिक और राजनीतिक मायने होते हैं.

पार्टी उनके जन्मदिन को अवसर के रूप में देखती है और वह लगातार आमजन से लेकर गरीब-मलिन बस्तियों तक पहुंच बनाती आ रही है. और इसका उसे चुनाव-दर-चुनाव फायदा भी मिल रहा है.

मन की बात में दूरदराज के ग्रामीणों के काम की चर्चा

वे जब रेडियो पर मन की बात करते हैं तो हर एपिसोड में दिल्ली से दूर किसी गांव-कस्बे में बैठे कुछ ऐसे सामान्य लोगों के काम की सराहना करते हैं कि कुछ ही घंटों में वह व्यक्ति अपने इलाके का स्टार बन जाता है. जिसे मोहल्ले के बाहर कोई जानता तक नहीं था, उसके घर की ओर मीडिया की गाड़ियां दौड़ी आती हुई दिखती हैं.

बीते नौ सालों से लगभग हर महीने वे कुछ लोगों के भाग्य का पिटारा खोल देते हैं, उनका व्यापार बढ़ जाता है. वे सेलिब्रेटी बन जाते हैं.उनकी ओर से आम लोगों भेजे हुए जन्मदिन के शुभकामना संदेश अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल होते हुए देखे जाते हैं. पीएम मोदी ट्विटर पर जिन लोगों को फॉलो करते हैं. इनमें कई आम लोग भी हैं. अक्सर ट्विटर के बायो में ऐसे लोग लिखते हैं कि फॉलोड बाई ऑनरेबल पीएम.

जिसका विरोधियों ने उड़ाया मजाक वहीं अभियान बन गया

यह भी लोगों को अपना बनाने की उनकी नीति का हिस्सा है. मोदी ने जब देश में स्वच्छता पखवाड़े की शुरुआत की तो विरोधियों ने हास-परिहास किया लेकिन यही स्वच्छता पखवाड़ा देश में अभियान बन गया. गांव-गांव शौचालय बने. इन्हें इज्जत घर नाम मिला. जो मां-बहनें शौच को घर से बाहर खेत की ओर या सड़क किनारे अंधेरे में जाने को मजबूर होतीं उन्हें अब एक मश्किल से मुक्ति मिल गई. अनेक महत्वपूर्ण हस्तियों को स्वच्छता का दूत बना कर लोगों को प्रेरित किया और पीएम सीधे-सीधे मां-बहन-बेटियों के दिलों में उतरते गए. ग्रामीण महिलाओं की इस परेशानी को वही समझ सकता है, जिसका रिश्ता गांव से है.

कभी स्वच्छता सप्ताह तो कभी सेवा सप्ताह

अलग-अलग जाति, धर्म, समूह, व्यक्ति, संस्थानों से रिश्ता बनाने की उनकी इसी कला की वजह से भारतीय जनता पार्टी अपने नेता के जन्मदिन को इवेंट में बदल देती है. ऐसा वह साल 2014 से वह लगातार करती हुई आ रही है. पार्टी को पता है कि मोदी ने जो रिश्ता साल भर बनाया है, उसे अपने पक्ष में करने का एक अवसर उनका जन्मदिन भी है.

साल 2014 से जन्मदिन पर कभी स्वच्छता सप्ताह तो कभी पखवाड़ा मनाया गया. किसी साल सेवा सप्ताह या पखवाड़े के रूप में मनाया गया. इसे मूल संगठन तो करता ही है, अनुसांगिक संगठन भी अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. पर, इस बीच जो एक सामाजिक संदेश देने की कोशिश होती है, वह काबिल-ए-गौर है. सेवा सप्ताह हो पखवारा, गरीब-मलिन बस्तियों में हेल्थ कैंप जरूर लगते हैं. रक्तदान शिविर बड़ी संख्या में लगते हैं.

पार्टी चाहती है कि या तो वह आमजन के पास पहुंचे या फिर किसी न किसी बहाने आमजन उनके करीब आएं. जो भी आया उसे सरकार के कामकाज का फ़ोल्डर जरूर मिला, जिसमें सरकार की जनहितकारी लोकप्रिय योजनाओं का डाटा भी होगा और तस्वीरें भी.

अब विश्वकर्मा योजना से समाज को जोड़ने की तैयारी

यह पहला मौका है जब पीएम मोदी के जन्मदिन पर विश्वकर्मा योजना लागू हो रही है. 13 हजार करोड़ की यह योजना सीधे उस समाज को जोड़ने जा रही है, जो ज्यादातर दलित, ओबीसी श्रेणी से आते हैं. कोई कुछ भी कहे, हमारे देश में अभी राजनीति में जातियां अग्रणी भूमिका में रहने वाली हैं. स्वाभाविक है इस कार्यक्रम का सामाजिक असर तो होगा ही, राजनीतिक असर भी भरपूर होने वाला है. तीन केन्द्रीय मंत्रालयों की देखरेख में शुरू होने वाली इस योजना को लांच करने के लिए देश भर में केन्द्रीय मंत्रियों को लगाया गया है. ऐसा मोदी सरकार पहले भी करती रही है.

योजनाओं को घर-घर पहुंचाया

भाजपा के सांगठनिक कार्यक्रमों की एक जबरदस्त खासियत है. वह यह कि एक ही कार्यक्रम वार्ड, ग्राम सभा से लेकर जिला,राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर करने की क्षमता रखती है. जिस कार्यक्रम में जो भी मुख्य वक्ता है, वह सरकार के कार्यक्रमों, उपलब्धियों के आंकड़ों के साथ जानकारी तो देता ही है, पीएम को शुक्रिया कहना नहीं भूलता. यह भाजपा की ट्रेनिंग का महत्वपूर्ण हिस्सा है. इन कार्यक्रमों के प्रधानमंत्री जनधन योजना से लेकर उज्ज्वला योजना तक की सफलता के किस्से होते हैं. किसान सम्मान निधि और पीएम मुद्रा लोन के आंकड़े सुनने को मिलेंगे तो पीएम सौभाग्य योजना, स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने शौचालयों की चर्चा भी होगी.

प्रधानमंत्री आवास योजना, आयुष्मान भारत तथा सुकन्या समृद्धि योजना की चर्चा करना नेता नहीं भूलते. नरेंद्र मोदी सरकार की ये सभी योजनाएं सीधे-सीधे हर घर तक पहुंची हैं. लोगों ने फायदा लिया है. उनके जीवन में बदलाव आया है. इन सभी योजनाओं का असर समाज के विभिन्न तबकों पर सकारात्मक रूप से पड़ा है, उनका जीवन स्तर ऊपर आया है. इस सामाजिक बदलाव का असर राजनीतिक बदलाव में स्पष्ट देखा जा रहा है.

एक के बाद एक चुनाव लगातार भाजपा जीत रही है. बीते तीन साल से 80 करोड़ लोगों तक पहुंच रहा फ्री राशनकिसी योजना का हिस्सा भले नहीं बनाया गया है लेकिन उसके भी राजनीतिक, सामाजिक लाभ भाजपा को मिल रहा है.