सत्ता के सिंहासन की खातिर मध्य प्रदेश में दलित आदिवासी वोट बैंक को लुभाने की कवायद तेज़ हो गई है. बीजेपी और कांग्रेस का खेल बिगाड़ने जयस और सपाक्स जैसे संगठन अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं. रैलियों से लेकर चुनावी गीत तक जारी किए जा रहे हैं. ऐसे में अब सवाल ये खड़ा होने लगा है कि आखिर इस वोट बैंक को लुभाने में आखिर कौन कामयाब होगा.
इधर रैलियां और उधर बैठकों पर बैठकों का दौर जारी है. दलित आदिवासी वोट बैंक साधने की चिंता बीजेपी को इस कदर सता रही है कि पार्टी के राष्ट्रीय स्तर के दलित आदिवासी नेताओं ने मध्य प्रदेश में डेरा डाल लिया है. पिछले दिनों बीजेपी अनुसूचित जनजाति मोर्चा अध्यक्ष राम विचार नेताम भोपाल आए थे और उन्होंने आदिवासी नेताओं के साथ अहम बैठक की थी. उसमें जयस से लेकर उन सीटों तक के बारे में विशेष रूप से चर्चा की गई जहां पिछले चुनाव में पार्टी हार गयी थी. में बीते चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था.
बीजेपी की चिंता की वजह ये भी है कि मध्य प्रदेश में जय आदिवासी शक्ति संगठन यानि जयस आदिवासियों के बीच अपनी ताकत लगातार बढ़ा रहा है. उधर सरकार ने प्रमोशन में आरक्षण के जरिए दलित वोटबैंक को खुश करने की कोशिश तो की लेकिन सामान्य पिछड़ा वर्ग अधिकारी कर्मचारी संघ यानि सपाक्स ने आरक्षण के खिलाफ मोर्चा खोल कर मुश्किल बढ़ा दी. जयस और सपाक्स दोनों संगठनों ने अपनी ताकत को मजबूत करने के लिए नए-नए तरीके अपना लिए हैं. सपाक्स ने तो बाकायदा चुनाव गीत तक तैयार कर लिया है.
कांग्रेस मौके की नज़ाकत को देखते हुए अपने सियासी पियादे फिट करने की कवायद में जुटी है.
मध्य प्रदेश में एससी करीब 18% और एसटी करीब 20% हैं. प्रदेश में एससी के लिए 35 सीटें रिजर्व हैं. इनमें से 2 कांग्रेस, 3 बीएसपी और 30 बीजेपी के पास हैं. 47 सीटें एसटी के लिए रिज़र्व हैं. इनमें से 32 बीजेपी और 15 कांग्रेस के पास हैं. 19 जिले एसटी बाहुल्य हैं लिहाजा ये समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है कि आखिर इन पर सबकी निगाहें क्यों हैं.