मांगों को लेकर छह माह से लघु सचिवालय के बाहर बैठे अनुसूचित जाति के करीब 300 परिवारों के 500 लोगों ने बौद्ध धर्म अपना लिया। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर धर्म परिवर्तन करते हुए उन्होंने प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन पर अनदेखी के आरोप लगाए। दो माह पूर्व भी 120 लोगों ने दिल्ली के लद्दाख बुद्ध भवन में जाकर बौद्ध धर्म अपनाया था।
समाज के नेता दिनेश खापड़ ने कहा कि विभिन्न मांगों को लेकर समाज के लोग करीब छह महीने से धरने पर बैठे हैं, लेकिन सरकार कोई सुनवाई नहीं कर रही। वे कोई नई मांग नहीं कर रहे, बल्कि सरकार द्वारा मानी गई मांगों पर अमल की बात कह रहे हैं। प्रदेश में हुए एससी वर्ग की महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में सीबीआई जांच शुरू नहीं हुई है और पीड़ित के परिजन को नौकरी भी नहीं दी गई है। इसके अलावा समाज के शहीदों के स्मारक बनाने और उनके आश्रितों को नौकरी देने की मांग अधूरी है। खापड़ का कहना है कि इन सब मांगों को लेकर कईं बार प्रदेश के मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया जा चुका है, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।
उत्तराखंड बौद्ध भिक्षु प्रधान प्रेम सागर ने कहा कि इनकी सही मायने में इनकी घर वापसी हुई है। क्योंकि प्राचीन काल में ये सब बौद्ध थे, लेकिन समय के साथ ये गुमराह हो गए थे। इन्हें पंचशील की शिक्षा दी गई है। अब चीन, थाईलैंड व जापान इनकी आवाज को यूएनओ में भी बुलंद करेगा।
जीवन से बड़ा होता है धर्म : धनखड़
स्वतंत्रता दिवस समारोह में बतौर मुख्यातिथि पहुंचे कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने कहा कि धर्म जीवन से बड़ा होता है और मांगों के लिए कभी धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहिए, क्योंकि मांगे तो बदलती रहती हैं। समाज की क्या मांगें है, उनके संज्ञान में नहीं है।