छत्तीसगढ़ के जशपुर में पत्थलगड़ी के बाद से स्थानीय हिन्दू आदिवासी और ईसाई आदिवासियों के बीच विवाद खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा. विश्व आदिवासी दिवस पर हिन्दू उरांव आदिवासी समाज के आराध्य पवित्र पेड़ करम का अपमान किये जाने का मामला तूल पकड़ते जा रहा है. जनजाति समाज इस मामले को लेकर आयोजकों के खिलाफ धार्मिक उन्माद बढ़ाने का आरोप लगाकर कार्रवाई की मांग कर रहा है. इसके तहत जनजाति सुरक्षा मंच के आदिवासियों ने विश्व आदिवासी दिवस पर आयोजित कार्यक्रम के आयोजकों के खिलाफ थाने में शिकायत की है.
दरअसल उरांव समाज के लोग करम के पेड़ को अपना आराध्य मानते हैं और अपनी संस्कृति की पहचान कायम रखने के लिए करम पेड़ की डंगाल को पूरे विधि-विधान से काटकर आंगन में स्थापित कर पूजा करते हैं और उत्सव मनाते हैं. उरांव समाज के नेताओं ने कोतवाली थाने में शिकायत की है कि बीते 9 अगस्त को रणजीता स्टेडियम में आयोजित विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर करम पेड़ की डगाल लाये गए, लेकिन कार्यक्रम के बाद इन पवित्र डगालों को तोड़कर रखा गया जो कई लोगों के पैरों तले रौंदा जा रहा था, जिसे देखकर उरांव समाज आक्रोशित हो गया.
सड़क किनारे पड़े करम पेड़ की डगालों को उरांव समाज के लोगों ने उठाकर विधि – विधान से नदी में बहाया. समाज के आक्रोशित लोगों ने इसे धर्मान्तरित आदिवासियों के द्वारा खुद को जबरन मूल आदिवासी बताने की साजिश बताया है. डीआर भगत, सोमनी भगत सहित अन्य का कहना है कि आयोजक अगर मूल आदिवासी होते तो पवित्र करम डाल का अपमान कभी नहीं करते. वहीं आयोजक समूह के कृपाशंकर भगत इस मामले को साजिश करार दे रहे हैं. इस संवेदनशील मामले में शिकायत मिलने के बाद पुलिस जांच कर रही है.