दिन रात किसानों की बात करने वाले राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस में किसान विभाग ही नहीं है. पार्टी में दलित, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, आदिवासी और यहां तक कि ओवरसीज़ कांग्रेस विभाग भी है लेकिन किसानों के साथ संवाद का कोई ज़रिया नहीं है. सवाल ये है कि मोदी सरकार की किसान नीति की बखिया उधेड़ने वाले राहुल गांधी को किसान सेल बनाने में कोई दिलचस्पी क्यों नहीं है? सवाल ये भी है कि किसान को बहाना बनाकर मोदी पर निशाना साधने वाले राहुल किसानों को पार्टी में तरजीह कब देंगे?
किसानों के दर्द को हमदर्द बनकर हर मंच से सवाल उठाने वाले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पार्टी में किसानों के लिए कितनी जगह है? ये सवाल इसलिए क्योंकि पार्टी में फिलवक्त न तो किसान सेल है और न ही उसका अध्यक्ष. पहले पार्टी में किसान खेत मज़दूर सेल हुआ करता था. कुछ साल पहले तक इसके अध्यक्ष हुआ करते थे.
आज के मीडिया सेल के अध्यक्ष रणदीप सुरजेवाला के पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र राहुल गांधी ज़ोर शोर से किसानों की समस्याओं का ज़िक्र करते है. संसद में कांग्रेसी अक्सर “नरेंद्र मोदी, किसान विरोधी” का नारा भी बुलंद करते हैं, लेकिन सवाल ये है कि पार्टी के अंदर किसानों की आवाज़ उठाने वाले फोरम यानी किसान सेल से पार्टी ने अपना मुंह क्यों मोड़ लिया है? कांग्रेस नेता प्रियंका चतुर्वेदी कहती हैं कि राहुल हमेशा किसानों से मिलते है, उनकी समस्या सुनते हैं और जल्द ही किसान सेल का भी गठन हो जाएगा.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों के मुद्दे को लेकर यूपी के भट्टा परसौल में बड़ी लड़ाई लड़ी थी. किसानों की ज़मीन बचाने के लिए भूमि अधिग्रहण बिल भी लाये. कांग्रेस ने यूपीए 1 में किसानों का कर्ज़ भी माफ किया जिसका ज़बरदस्त चुनावी फायदा पार्टी को मिला. किसानों की आवाज़ उठाने वाले राहुल गांधी ने एक के बाद एक पार्टी में कई सेल बनाये.
परंपरा से हटकर प्रोफेशनल कांग्रेस, मछुआरा विभाग, डेटा एनालिसिस विभाग, विदेश विभाग के अलावा ओवरसीज़ विभाग सहित कई नए प्रयोग किये. लेकिन किसानों का पार्टी में प्रतिनिधित्व न होना सवाल खड़े करता है. मौका मिलते ही बीजेपी ने राहुल गांधी पर हमला बोल दिया. बीजेपी प्रवक्ता जी वी एल नरसिम्हा राव कहते हैं कि राहुल गांधी सिर्फ किसानों का वोट हासिल करना चाहते हैं और किसानों का भाला करने से उन्हें कोई मतलब नहीं है.
बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों को बख़ूबी पता है कि 2019 की जंग में किसान पासा पलट सकता है. मोदी सरकार ने चुनावी साल में फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाकर सियासी बढ़त बनाने की ज़मीन तैयार कर दी है. ज़ाहिर है राहुल गांधी को भी किसानों की बात उनके साथ करनी होगी सिर्फ ज़बानी जमाखर्च से काम नहीं चलेगा.