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बैगा आदिवासी वनोपज की खरीदी न होने का बिचौलिए उठा रहे फायदा

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छत्तीसगढ़ में कवर्धा जिले के वनांचल में रहने वाले बैगा आदिवासी वनोपज की खरीदी न होने से परेशान हैं. वन अमला क्वालिटी सही न होने का हवाला देकर उनसे खरीदी नहीं कर रहा है, जिसका फायदा बिचौलिए जमकर उठा रहे हैं. वे बैगा आदिवासियों की मेहनत से एकत्रित किए गए चार गुठलियों को औने-पौने दाम पर खरीद रहे हैं, जिसके चलते उन्हें शासन के निर्धारित दर का लाभ नहीं मिल रहा है. प्रति किलो 50 से 60 रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है. ग्रामीणों ने मांग की है वन अमला उनके वनोपज की खरीदी करे.

सुदूर वनांचल ग्राम छिंदीडीह में बैगा आदिवासी अपनी मेहनत की कमाई को बिचौलिए के हाथों देने को मजबूर हैं. वन अमला अगर यही चार-गुठली को उसे 105 रुपए प्रति किलो मिलता, लेकिन वन विभाग द्वारा खरीदी न करने के कारण वे बिचौलिए को बेच रहे हैं. ये बिचौलिए इनसे प्रति किलो 40 से 45 रुपए खरीद रहा है. सीधे-सीधे 50 से 60 रुपए का नुकसान हो रहा है.

वन विभाग ने वनोपज चार-गुठली का समर्थन मूल्य 105 रुपए तय किया है, जिसमें 93 रुपए प्रति किलो की दर से खरीदी की जानी है. साथ ही 12 रुपए बोनस दिया जाना है, लेकिन यही सामान बिचौलिए खरीद रहे हैं, जो 40 से 45 रुपए बैगाओं को दे रहे हैं. बिचौलिए का कहना है कि वे खुद इसे 60-62 रुपए में दूसरे व्यापारियों को बेचते हैं. वे गांव-गांव घूमकर खरीदी कर रहे हैं. खरीदी न करने पर बैगा आदिवासी घर तक पहुंच जाते हैं.

मामले में डीएफओ ने कहा कि विभाग के माध्यम से खरीदी बंद नहीं की गई है. पहले भी उन्होंने इस क्षेत्र से चार की खरीदी की है. अभी खरीदी न करने का कारण है क्लालिटी में कमी होना. ग्रामीण कच्चा और सूखा चार मिक्स कर लाते हैं, जो किसी काम का नहीं रहता. विभाग के लिए उसे खरीदना सीधे-सीधे नुकसान है. इसलिए ग्रामीण साफ सूथरा वनोपज लाए तो विभाग को खरीदने में कोई आपत्ति नहीं है.

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