तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा तो कर लिया, लेकिन अब सरकार नहीं बना पा रहा है. सरकार बनाने के लिए तालिबान के अंदर ही घमासान मचा है. अफगानिस्तान के अखबार ‘पंजशीर ऑब्जर्वर’ की रिपोर्ट के मुताबिक, सत्ता को लेकर तालिबान और हक्कानी नेटवर्क (Haqqani Network) आमने-सामने हैं. दोनों गुटों के बीच गोलीबारी होने लगी है. ऐसे ही एक घटनाक्रम में तालिबान का को-फाउंडर मुल्ला बरादर घायल हो गया है. हालांकि सत्ता के लिए खूनी संघर्ष की कहीं पुष्टि नहीं हुई है.
रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि बरादर अब पाकिस्तान में इलाज करा रहा है. इसी के चलते सरकार के गठन के ऐलान को भी टाल दिया गया है. इससे पहले खबरें आई थीं कि तालिबान की सरकार का नेतृत्व बरादर के हाथ में होगा.
मुल्ला बरादर चाहता है कि वह सभी पक्षों को शामिल करते हुए सरकार का गठन करे, लेकिन हक्कानी नेटवर्क ऐसी किसी साझेदारी के खिलाफ है.सिराजुद्दीन के नेतृत्व में हक्कानी और उसके आतंकवादी समूह किसी के साथ सत्ता साझा नहीं करना चाहते हैं. कहा जा रहा है कि हक्कानी को पाकिस्तान का मौन समर्थन हासिल है. हक्कानी इस्लामिक नियमों पर आधारित एक शुद्ध तालिबान सरकार के पक्ष में हैं.
तालिबान और मुल्ला बरादर के लिए ये मुश्किल है, क्योंकि दोहा में उन्होंने जिन देशों के साथ वार्ता की है, उनसे यही कहा है कि वे सभी पक्ष को मिलाकर सरकार बनाएंगे.
पाकिस्तान चाहता है कि तालिबानी सरकार में अहम पद हक्कानी नेटवर्क को दिए जाएं. इसके जरिए वह अफगानिस्तान की सेना को नए सिरे से खड़ा करना चाहता है. फैज के काबुल पहुंचने के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि वह क्वेटा शूरा के मुल्ला याकूब, मुल्ला अब्दुल गनी बरादर और हक्कानी नेटवर्क के बीच मतभेद खत्म करना चाहते हैं.
अमेरिका ने 20 साल से चले आ रहे अफगान युद्ध (Afghan War) को खत्म करते हुए अपने सैनिकों को वापस बुला लिया है. निकासी अभियान के बीच ही 15 अगस्त को तालिबान ने काबुल में प्रवेश कर देश पर कब्जा कर लिया था और इसी दिन अफगान सरकार गिर गई. राष्ट्रपति रहे अशरफ गनी भी देश छोड़कर भाग गए थे. चीन, पाकिस्तान और रूस जैसे देशों ने बयान जारी किए, जिनसे ऐसा लगता है कि ये तालिबान के आने से खुश हैं.