Home News पैट्रोल जोन नियम जिसका LAC पर एकसाथ पालन करेंगे भारत-चीन

पैट्रोल जोन नियम जिसका LAC पर एकसाथ पालन करेंगे भारत-चीन

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भारत और चीन(India-China) की सेना ने गोगरा पोस्ट के पास के पैट्रोलिंग प्वाइंट 17 ए से हटने का फैसला लिया है. दोनों ही तरफ की सेना पिछले साल से ही पेट्रौलिंग प्वाइंट से हटने से जुड़े पहले के प्वाइंट का पालन कर रही है. वैसे अस्थायी नो-पेट्रौल जोन जगह-जगह के हिसाब से तय होता है. भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर नो-पेट्रोलिंग या बफर ज़ोन क्या है, और वर्तमान परिदृश्य में इसकी क्या महत्ता है, आइए जानते हैं.

नो-पेट्रोल ज़ोन क्या है
जब दो पक्ष ऐसी जगह से हटने का फैसला लेते हैं जहां अक्सर उनका आमना-सामना होता है. और इस टकराव को रोकने के लिए ऐसा ज़ोन तैयार किया जाता है, जहां एक निश्चित समय से ज्यादा किसी भी टुकड़ी को रहने की इजाज़त नहीं होती है, जैसा कि नो-पेट्रोल जोन के नाम से विदित है कि ऐसी जगह जहां पर किसी भी टुकड़ी या दल को पेट्रोलिंग की अनुमति नहीं होती है.

भारत और चीन के नो-पेट्रोलिंग ज़ोन के विचार को 1962 के युद्ध से समझा जा सकता है. 21 नवंबर,1962 को चीन के एकतरफा युद्धविराम के बाद, उसने अपनी सेना को उस जगह से 20 किमी पीछे लाने का फैसला लिया जो कथित तौर पर 21 नवंबर,1962 तक वास्तविक नियंत्रण रेखा माना जाता था. इस तरह चीन ने एक तरह का बफर जोन तैयार किया जो बताता था कि उनके हिसाब से वास्तविक नियंत्रण रेखा कहां तक थी और कहां पर उनकी सेना मौजूद थी.

साल 2013 में भारत ने इस तरीके का इस्तेमाल किया था, जब चीन की टुकड़ी ने देपसांग मैदानी के एक संकरे इलाके में अपने तंबू लगा दिए थे, भारत यहां टकराव को बातचीत से हल करने का प्रयास कर रहा था. देपसांग के मुद्दे को समाप्त करने के उद्देश्य को समझते हुए, भारत ने अस्थायी तौर पर इस इलाके में आगे दक्षिण तक पेट्रोलिंग को अस्थायी तौर पर स्थगित कर दिया, इसी तरह पूर्वी लद्दाख के चुमार ( ये इलाका दक्षिण में मौजूद है लेकिन है पूर्वी लद्दाख का हिस्सा) में भी विवाद को टालने के लिए भारत ने 2014 में पेट्रोलिंग को अस्थायी तौर पर स्थगित कर दिया था.

पेट्रोलिंग की अहमियत क्या है ?
जब सीमा को लेकर दो देशों एकमत नहीं होते हैं जैसे भारत और चीन के मामले में है, जहां दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा की सीध पर सहमत नहीं है. इसलिए सेना इस क्षेत्र में निगरानी करके अपना नियंत्रण बनाए रखने का प्रयास करती है. भारत के लिए क्या पेट्रोलिंग प्वाइंट होंगे इस बात का फैसला चाइना स्टडी ग्रुप (सीएसजी) लेता है, जो सचिव स्तर का एक अधिकारियों का समूह है और चीन से जुड़े मामले में केंद्र सरकार का एकमात्र सलाहकार है.

पूर्वी लद्दाख में 60 पेट्रोलिंग प्वाइंट हैं. कुछ मामलों में ये प्वाइंट नक्शे पर चिन्हित हैं, कुछ में, खास भौगोलिक विशेषताएं, पारपंरिक पेट्रोलिंग प्वाइंट की तरह काम करती हैं. देपसांग मैदान को छोड़कर सभी जगह वास्तविक नियंत्रण रेखा के पेट्रोलिंग प्वाइंट पर हैं. देपसांग में, पेट्रोलिंग की सीमा वास्तविक नियंत्रण रेखा से भारतीय क्षेत्र में काफी अंदर है.

पिछले साल तक, यहां दो इलाके देमचोक और ट्रिग हाइट्स थे, जिसके विवादित होने को लेकर दोनों पक्ष सहमत थे. इसी तरह पूर्वी लद्दाख में 10 और ऐसे प्वाइंट है जहां वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर दोनों देशों के अलग अलग मत हैं. इसी तरह पिछले साल पांच और ऐसे प्वाइंट सामने आए हैं, जिनमें पीपी 14 (गलवान), पीपी 15 (हॉट स्प्रिंग्स), पीपी 17ए (गोगरा पोस्ट), रेजांगा ला और रेचिन ला शामिल हैं.

नो-पेट्रोल ज़ोन कहां पर हैं. ?
मई 2020 में गतिरोध शुरू होने से पहले तक पिछले साल से, पीपी17एक तीसरा क्षेत्र बन गया जहां भारतीय टुकड़ी गश्त लगाया करती थी, अब कम से कम अस्थायी तौर पर सेना ऐसा नहीं करेंगी. पिछले साल के बाद से गालवान वैली में इस तरह का पहला नो-पेट्रौल जोन बनाया गया था.

15 जून,2020 को भारतीय सैनिक चीन की एक ऑब्जर्वेशन पोस्ट को हटाने गए थे, ये दल पीपी14 के पास आ गया था. इस बात को लेकर दोनों पक्षों के बीच विवाद हुआ जो हिंसक हो गया और इसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए. पहले पहल तो चीन ने अपने किसी सैनिक के मारे जाने की पुष्टि नहीं की, लेकिन बाद में उसने चार सैनिकों के मारे जानी का बात स्वीकारी. इसके बाद गालवान वैली जहां तनाव बहुत ज्यादा बड़ गया था उसे रोकने के लिए दोनों पक्ष पीछे हटने को राजी हो गए थे.

क्या पेट्रोलिंग को लेकर स्थगन स्थायी है ?
भारतीय अधिकारियों ने कई बार अपनी बात दोहराई है कि पेट्रोलिंग को लेकर स्थगन स्थाई नहीं है, और न ही भारत इन इलाकों में निगरानी के अधिकार को छोड़ रहा है. ये स्थगन तब तक है जब तक पूर्वी लद्दाख का मामला सुलझ नहीं जाता है. इसका मतलब है कि तनाव वाली जगह पर सेना को हटाया नहीं जा रहा बल्कि वहां युद्ध होने की तीव्रता को भी कम किया जा रहा है, युद्ध होने की तीव्रता से मतलब है कि दोनों ही पक्ष अतिरिक्त टुकड़ी को वापस बुलाएंगे, ये वो टुकड़ी है जो पिछले साल से वहां पर तैनात है.

दोनों ही तरफ से करीब 50,000 सशस्त्र सैनिकों का दल यहां पर तैनात है. हालांकि रक्षा विभाग के सूत्रों की माने तो पीपी 15 का मामला वार्ता से सुलझ जाएगा, बड़ी दिक्कत देपसांग हो सकती है. वहीं भारत सरकार देपसांग को तनाव का क्षेत्र नहीं मान कर चल रही है. चीन भारतीय सैनिक दलों को पारपंरिक पेट्रोलिंग सीमा जैसे, पीपी10, पीपी11, पीपी11ए, पीपी 12 और पीपी 13 में जाने से रोक रहा है. चीनी दल ने भारतीय सैनिकों को वास्तविक नियंत्रण रेखा से करीब 18 किमी अंदर के पूर्वी इलाका जिसे बॉटलनेक कहा जाता है वहां भी जाने से रोका है.