जगदलपुर. बस्तर के जंगलों में विभिन्न धर्मो और पंथों की हजारों दुर्लभ मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं, इनमें कई जैन मूर्तियां भी हैं, जो कम से कम एक हजार साल पुरानी हैं, इन मूर्तियों का सरंक्षण न तो पुरातत्व विभाग कर रही है, न ही कोई सामाजिक संगठन । पर्यटनविद राकेश पांडे एवं नरेंद्र पाणिग्राही ने बताया कि बस्तर में ऐसी मूर्तियां को लगातार क्षति पहुंचाया जा रहा है, इसके बावजूद प्रतिमाओं का सरंक्षण नहीं हो पा रहा है। ग्रामीणों का सीधा सा प्रस्ताव है कि लोग अपने पंथ और धर्म के आधार पर ही इन मूर्तियों का संरक्षण गंभीरता से करने लगें तो हमें सरकार का मुंह ताकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मंदिरों की नगरी बारसूर से करीब एक किमी दूर हिड़पाल में भालूनाला के किनारे तेईसवें जैन तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा पड़ी है। ग्रामीण इसे नागराज के नाम से पूज रहे हैं, वहीं नागफ नी में भी एक जैन प्रतिमा है। चित्रकोट के पास नारायणपाल से दो किलो मीटर दूर कुरूषपाल में पहले जैन तीर्थकर आदिनाथ की प्रतिमा है, जो एक खेल में मिली थी । सोनारपाल के कुछ भक्तों ने इनके लिए एक छोटा सा मंदिर बनवा दिया है। इधर इंद्रावती और नारंगी नदी के संगम पर बोदरागढ़ में किला की दीवार पर तेइसवें जैने तीर्थकर भगवान पाश्र्वनाथ की पुरानी प्रतिमा स्थापित है।
ग्रामीण इसे द्वार मुडिया के नाम से पूजते हैं। इसी तरह जगदलपुर के सात किलो मीटर दूर इन्द्रावती नदी किनारे भाटागुड़ा में 16 वें जैन तीर्थकर भगवान शांतिनाथ की दुर्लभ प्रतिमा है। ग्रामीण इसे भैरम बाबा कहते हैं और वार्षिक जात्रा में इन्हें बलि देते हैं। बता दें कि उपरोक्त चारों प्रतिमा पुरातत्व विभाग की सूची में नहीं हैं, इसलिए विभाग भी इनकी सुरक्षा के प्रति उदासीन है।