अमित जोगी और ऋचा जोगी मरवाही का उपचुनाव नहीं लड़ पाएंगे। रिटर्निंग अधिकारी ने दोनों का नामांकन निरस्त कर दिया है। राज्य बनने के बाद यह पहली बार है जब मरवाही से जोगी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा। जाति प्रमाण पत्र मामले में उच्च स्तरीय जांच समिति ने अमित जोगी के प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया, जबकि जिला स्तरीय छानबीन समिति ने पहले ही ऋचा जोगी के प्रमाण पत्र को निलंबित कर दिया था।
इसी को आधार बनाकर जिला निर्वाचन अधिकारी ने अमित और ऋचा के नामांकन को निरस्त कर दिया। इसके बाद अब यहां कांग्रेस-भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होगा। मरवाही उपचुनाव में नामांकन के बाद कांग्रेस प्रत्याशी केके ध्रुव ने जिला निर्वाचन अधिकारी से अमित जोगी का नामांकन निरस्त करने की मांग की थी। ध्रुव ने निर्वाचन अधिकारी को लिखे अपने पत्र में कहा कि हाई पावर कमेटी अजीत जोगी के जाति प्रमाणपत्र को निरस्त कर चुकी है।
कमेटी के इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, लेकिन इस पर कोई स्टे नहीं दिया गया। एफआईआर दर्ज कर जांच पर भी रोक नहीं लगाई गई है। जब पिता को ही गैर आदिवासी वर्ग का माना गया है तो अमित जोगी आदिवासी कैसे हो सकते हैं। गोंगपा और संतकुमार नेताम ने भी शिकायत कर रद्द करने की मांग की थी। बता दें कि इस मामले को लेकर अमित और ऋचा जोगी दोनों कोर्ट जा सकते हैं। एक मामले को लेकर वे पहले ही कोर्ट की शरण ले चुके हैं।
पिता से होती है बेटे की जाति, अजीत जोगी कंवर नहीं: समिति
राज्य स्तरीय हाई पावर कमेटी की ओर से कहा गया है कि डाक के जरिए अमित जोगी को नोटिस भेजा गया था। समिति का तर्क था कि 23 अगस्त 2019 को कमेटी ने अजीत जोगी को कंवर नहीं माना था। बेटे की जाति पिता की जाति से ही तय होती है। ऐसे में अमित जोगी को कंवर नहीं माना जा सकता है।
इससे पहले अमित जोगी ने डीआरओ से अपना पक्ष रखने दो दिन का समय मांगा, जिसे खारिज करते हुए कहा कि जो कहना है अभी कहिए समय नहीं दूंगा। इस दौरान दो घंटे चली बहस में अमित ने डेढ़ घंटे तक अपना पक्ष रखा। वहीं, दूसरी ओर अमित जोगी ने दैनिक भास्कर से कहा कि शुक्रवार को रातोंरात उच्चस्तरीय जाति छानबीन समिति ने उनका प्रमाण पत्र निरस्त किया।
इस बात की खबर उनको छोड़कर बाकी सभी को थी। उन्होंने कहा कि पढ़ने के लिए समय मांगा, वो भी नहीं दिया गया। इससे पहले सोशल मीडिया में लिखा है- मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है, क्या मेरे हक में फैसला देगा। जोगी ने कहा कि हम कानून की लड़ाई लड़ेंगे और अपना सम्मान व अधिकार प्राप्त करेंगे।
नतीजों के बाद ही कोर्ट जाने का विकल्प
पूर्व निर्वाचन आयुक्त डॉ. सुशील त्रिवेदी का कहना है कि जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया गलत नहीं है। एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद जो कुछ भी आपत्तियां या त्रुटियां हैं, उनके निराकरण का अंतिम अधिकार जिला निर्वाचन अधिकारी को होता है।
अब जो कुछ भी होगा नतीजों के बाद ही न्यायालय को हस्तक्षेप करने का अधिकार है। चूंकि मरवाही एसटी के लिए आरक्षित है इसलिए डीआरओ के फैसले के खिलाफ यह सिद्ध करना होगा कि चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है।
सरकार नामांकन निरस्त नहीं करती
सरकार किसी का नामांकन निरस्त नहीं करती है। निर्वाचन अधिकारी ने स्क्रूटनी के बाद यह फैसला लिया है। मरवाही अनुसूचित जनजाति सीट है, ऐसे में जिसके पास प्रमाण पत्र होगा वही चुनाव लड़ सकता है। जांच के दौरान अमित के पास वैध प्रमाण पत्र नहीं मिला, इसलिए नामांकन निरस्त किया गया।
-रविंद्र चौबे, कृषि मंत्री और सरकार के प्रवक्ता
सरकार घबराई और डरी हुई है
सरकार घबराई और डरी हुई है। अपनी हार के डर से कांग्रेस ने नामांकन रद्द करवाया। लोकतंत्र में सबको चुनाव लड़ने का अधिकार है, लेकिन सरकार प्रत्याशियों को लड़ने नहीं देना चाहती। मरवाही में 6 मंत्री, 49 विधायकों की तैनाती ही सरकार के डर को बता रही है।