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आंखों की लाइलाज बीमारी और गरीबी को मात देकर नाई का बेटा बना PSC टॉपर…

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अपने घर में बैठे हितेश श्रीवास कहते हैं कि गरीब पैदा होना गुनाह तो नहीं पर गरीब मर जाना एक बड़ा गुनाह है. हितेश श्रीवास, जिसने छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) लोक सेवा आयोग (PSC) की परीक्षा में विकलांग कोटे से टॉप (Top) किया है. हितेश की आंखों में शुरू से ही लाइलाज बीमारी है. उन्हें सिर्फ 12 सेंटीमीटर ही बिना चश्मे के दिखाई देता है. ऐसे में भी लगातार पढ़ाई कर पहले ही प्रयास में हितेश ने पीएससी की मेरिट सूची में जगह बनाई है. कोटे से मिले इस रैंक से हितेश को सहकारी बैंक में असिस्टेंट डायरेक्टर, रजिस्ट्रार का पद मिला था.

हितेश श्रीवास जांजगीर-चांपा के एक छोटे से जैजैपुर के रहने वाले हैं. उनके पिता पेशे से नाई हैं, जो कि गांव के घरों में जा जाकर बाल और सेविंग बनाने का काम करते हैं. हितेश बताते हैं कि जब वे छोटे थे तब से उनकी पढ़ाई के प्रति काफी रुचि थी. पर पिता के नाई होने और मां के ईंट भट्ठे में मजदूरी करने के कारण घर की आर्थिक स्थिति शुरू से ठीक नहीं थी. परिवार में एक घटना के बाद हितेश की मां ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. इधर पिता ने दूसरी शादी कर ली.

नाई ही बनने का दबाव हितेश बताते हैं कि उनके पिता की दूसरी पत्नी उनपर नाई का काम करने के लिए लगातार दबाव बनाती रही. इस बीच घर की आर्थिक स्थिति और भी खराब होने की वजह से पिता सहित, नई मां और छोटा भाई दूसरे राज्य में मजदूरी करने चले गए. इधर हितेश इसी गांव में रहकर सरकारी स्कूल में पढ़ने लगे और 10वीं, 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में भी टॉप किया. गांव वालों के साथ ही जांजगीर के एक शैक्षणिक संस्था को हितेश के बारे में पता चला. हितेश को उस शैक्षणिक संस्था ने मदद किया और हितेश बिलासपुर पहुंच गए.

छोटे भाई ने ऐसे की हितेश की पढ़ाई में मददबिलासपुर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले एक निजी कोचिंंग संस्थान की फी काफी ज्यादा थी. लेकिन हितेश के प्रतिभा को देखते हुए कोचिंग संस्था ने उन्हें फ्री में कुछ छूट दे दी. फिर भी हितेश को कॉपी, किताब, नोट्स और फी के लिए रकम की आवश्यकता थी. हितेश ने बताया कि उनका छोटा भाई इस बीच दूसरे राज्य से वापस अपने गांव आ गया था और गोलगप्पे और कुल्फी बेचने का काम शुरू किया. इसी काम से मिलने वाले पैसों को छोटा भाई हितेश की पढ़ाई के लिए भेजता था.