इमामबाड़ा में रहने वाला सैयद परिवार 139 वर्षों से लगातार ताजिया बनाता आ रहा है। इस वर्ष सैयद परिवार की पांचवी पीढ़ी के बच्चों ने ताजिया बनाया है। ताजिया बनाने में निपुण सैयद परिवार का मानना है कि ताजिया अपनी आस्था के साथ विरासत को बचाने और पारिवारिक एकजुटता तथा सौहार्द्रता का सशक्त माध्यम है। इस विरासत को बचाने के लिए पांचवी पीढ़ी भी पूरी तन्मयता के साथ इस कार्य में लगी है और बीते सात दिनों में खूबसूरत ताजिया तैयार किया है।
ताजिया के कारण ही इमामबाड़ा की बस्तर में अलग पहचान है। ताजिया के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले विभिन्न जाति- धर्म के लोग बड़ी संख्या में इमामबाड़ा की चौखट चूमने आते हैं। ताजिया से मिली पहचान के चलते ही सैयद परिवार के सदस्य पूरी आस्था के साथ इस कार्य में जुट जाते हैं। इमामबाड़ा में अभी भी परंपरानुसार मिट्टी, बांस, कागज, आटा तथा सुतली से ताजिया बनाया जाता है। बताया गया कि एक ताजिया बनाने में पहले एक हजार रुपये तक खर्च आता थाा लेकिन अब महंगाई का असर ताजिया निर्माण पर भी पड़ा है। अब एक ताजिया बनाने पर पांच हजार से ज्यादा रुपये लग जाते हैं। यह भी बताया गया कि पहले मन्नत रखने वाले लोग सैयद परिवार से ताजिया बनवाते थे परंतु महंगाई के चलते वे ताजिया बनवाने की जगह चांदी का झूला ताजिया को अर्पित करने लगे हैं। इमामबाड़ा का ताजिया देर शाम पूरी निष्ठा के साथ शहर मध्य लाया गया और हुसैन की शहादत को याद करते हुए देर रात इंद्रावती में ठंडा कर दिया गया। बताया गया कि शहर में पहले पांच से अधिक ताजिया बनाए जाते थे, परन्तु अब मात्र दो ताजिया ही बनने लगा है। पहला इमामबाड़ा और दूसरा प्रतापगंज वार्ड में।
आस्था ने बनाया हुनरमंद
शहर का इमामबाड़ा वर्षों से ताजिया के लिए चर्चित है। इस वर्ष भी इमामबाड़ा में विशाल ताजिया बनाया गया है। सैयद परिवार की चौथी पीढ़ी के सैयद शाहिद अली बताते हैं कि वर्ष 1880 में उनके परदादा सैयद रमजान अली ने बस्तर में पहला ताजिया बनाया था। उनके इंतकाल के बाद दादा सैयद वाजिद अली ने इस काम को आगे बढ़ाया। दादा के बाद उनके पिता सैयद शौकत अली करीब 40 साल तक ताजिया बनाते रहे। उन्होंने ही मुझे यह हुनर सिखाया। वालिद अली पिछले 26 वर्षों से ताजिया बनाते आ रहे हैं। इस परंपरा के 139 वें साल में सैयद परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य अबरार अली, मुनाजिर अली, अयाज अली, मुजाहिद अली ने ताजिया बनाने में पूरी मदद की।