‘मुफलिसी में भले जीती हैं, हौसला आसमानी है, ये बस्तर की बेटियां हैं, इनका नहीं कोई सानी है।” जी हां, नक्सल घटनाओं, पिछड़ापन, गरीबी आदि को लेकर चर्चा में रहने वाले बस्तर की बेटियां कमाल की हैं। जगदलपुर जिले के बकावंड प्रखंड की सुभद्रा जब मैदान में दौड़ती है, तो सोना बरसता है। पदकों की झड़ी लग जाती है। वह अब तक साढ़े तीन लाख रुपए से ज्यादा का पुरस्कार जीत चुकी है।
सुभद्रा ने पुरस्कार की राशि ने पिता को ऑटो खरीदकर दिया। इसी इनामी राशि की बदौलत उसके भाई-बहनों की पढ़ाई छूटने से बच गई। चार भाई-बहनों में सुभद्रा सबसे बड़ी है। पिता संपत बघेल के पास सिर्फ दो एकड़ की खेती है। गरीबी घेरे हुए थी।
ऐसे में पद्मश्री धर्मपाल सैनी की ओर से संचालित माता शबरी कन्या आश्रम उनके लिए सहारा बना। उन्होंने सुभद्रा का वहां दाखिला करा दिया। बेटी प्रतिभाशाली थी और खेलों में रुचि थी। दौड़ का अभ्यास शुरू किया।
वह जब कक्षा तीसरी में थी, तो पहली बार जिला स्तर पर दो हजार रुपये का पुरस्कार जीता। चौथी कक्षा में तीन हजार रुपए का इनाम जीता। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। घर की गरीबी वह जानती थी। वह जानती थी कि बहनों और भाई को पढ़ाना पिता के लिए आसान नहीं है।
रुपयों की जरूरत होगी। उसे लगा कि दौड़कर वह पिता की चिंता दूर कर सकती है। इसके बाद उसने खूब मेहनत की और अब तक साढ़े तीन लाख रुपए का पुरस्कार जीत चुकी है। पिता आज उसके भेंट किए ऑटो की बदौलत परिवार संभाल रहे हैं।
पांच बहनें, सभी नेशनल एथलीट माता शबरी कन्या आश्रम माता रुक्मणी आश्रम डिमरापाल की ही शाखा है। ये दोनों आश्रम आदिवासी बालिकाओं की जिंदगी बदलने में लगे हैं।
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बकावंड ब्लॉक के ग्राम संघकरमरी निवासी दुकारूराम कश्यप व दशोदा की पांच बेटियां ललिता, शोभा, प्रमिला, चंद्रवती, रमावती और एक बेटा है। पांचों बेटियां नेशनल खिलाड़ी हैं। ललिता, चंद्रवती और प्रमिला मैराथन में अब तक दस लाख रुपये से ज्यादा का पुरस्कार जीत चुकी हैं। शोभा वॉलीबॉल की नेशनल खिलाड़ी है। रमावती भी राष्ट्रीय मैराथन में भाग ले चुकी है।