जिले के तपकरा रेंज में इन दिनों हाथियों का उत्पात चरम पर है। रेंज के अलग-अलग वन्य क्षेत्र में दर्जन भर हाथी विभिन्न दलों में भटक रहे हैं। इन अतिकायों को कहर खेत से लेकर घर तक बरप रहा है। इससे ग्रामीण अंचल के निवासियों का कृषि कार्य तो प्रभावित हो ही रहा है साथ ही उन्हें भय में रतजगा करना पड़ रहा है। ग्रामीण ना तो घर के अंदर सुरक्षित हैं और ना ही घर के बाहर। ओडिसा की सीमा पर स्थित ग्राम सुईजोर में सप्ताह भर के भीतर ही 10 घरों को क्षतिग्रस्त किया है। वन विभाग हाथियों के उत्पात से राहत दिलाने के लिए जीआई तार की बेरिकेटिंग कराने की तैयारी कर रहे है।
तपकरा वन परिक्षेत्र इन दिनों हाथियों का सबसे पसंदीदा क्षेत्र बना हुआ है। पड़ोसी राज्य ओडिसा में बेघर होकर छत्तीसगढ़ की सीमा में घुस आए ये अतिकाय जिले के लिए एक बड़ी समस्या बन चुके हैं। शाम होते ही घने जंगल से निकल कर मानव बस्ती में घुस कर तबाही मचा रहे हैं। ओडिसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ तीन प्रदेशों के बीच में स्थित एक छोटा सा गांव है सुईजोर। इस गांव में सप्ताह भर से हाथियों का उत्पात जारी है। वन विभाग के मुताबिक आसपास के जंगल में दो हाथी डेरा जमाएं हुए बैठे हुए हैं। इन हाथियों ने इस गांव के लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। शाम होते ही जंगल से निकल कर बस्ती में उत्पात मचाने लगते हैं। सुईजोर बस्ती में सप्ताह भर के अंदर में इन अतिकायों ने 10 घरों को ध्वस्त किया है। इनमें कुंदों बाई, मंगरू, पᆬागु राम, महेश्वर, मारकुस, दिव्या तिर्की, परमानंदराम, सुखनाथ, पास्कर, काश्मीर शामिल हैं। कुंदों बाई के घर को अतिकायों ने दो बाद निशाना बना चुके हैं। वन विभाग के मुताबिक हाथी अक्सर धान और महुआ की खुश्बू पाकर घर को निशाना बनाते हैं। इन अतिकायों के सूंघने की क्षमता इतनी अधिक होती है कि वे घर के उसी हिस्से को क्षतिग्रस्त करते हैं,जहां धान या महुआ रखा होता है। यही वजह है कि वन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी इन दिनों ग्रामीणों को कम से कम महुआ को घर में ना रखने की नसीहत दे रहे हैं। इसके साथ ही घर के जिस कमरे में धान या महुआ रखा हो, उस कमरे का उपयोग रात को ना करने की समझाइश भी दे रहे हैं। अधिकारियों का मानना है कि जब खुश्बू सूंघकर हाथी दीवार को क्षतिग्रस्त करेगा तो इसकी चपेट में आने की संभावना रहती है।
सुईजोर में लगातार हो रहे अतिकायों के हमले को देखते हुए वन विभाग इस गांव को करंट प्रवाहित जीआई वायर के पᆬेसिंग से सुरक्षित करने की कार्य योजना बनाने में जुटा हुआ है। माना जा रहा है कि उत्पात मचा रहे दोनों हाथी अभी इसी क्षेत्र में डेरा जमाए रहेगें। इस वजह से इनके बस्ती में घुसने की आशंका लगातार बने रहेगी। इसलिए ग्रामीणों को सुरक्षित रखने के लिए यह व्यवस्था आवश्यक माना जा रहा है। इस सिस्टम में गांव के उस छोर को जीआई तार के बाड़ से घेरा जाता है,जिस ओर से हाथी गांव में घुसते हैं। इस जीआई तार में बैट्री की मदद से हल्का करंट प्रवाहित किया जाता है। जैसे ही हाथी इस तार को छूते हैं,उन्हें करंट का हल्का झटका लगता है और वे अपना रास्ता बदल देते हैं। पᆬरसाबहार क्षेत्र में वन विभाग इस नुस्खे को पहले भी आजमा चुका है। जीआई तार का यह बाड़ अस्थाई होता है। हाथी के यहां से जाते ही विभाग इस बाड़ को दूसरे जगह स्थानानतरित कर सकता है। वन विभाग के मुताबिक जिले में 499 गांव हाथियों के उत्पात से प्रभावित हैं। हाथियों के उत्पात का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। गजराजों का दल अब ग्रामीण क्षेत्रों से बाहर निकल कर जिले के छोटे कस्बाई क्षेत्रों की ओर रूख करने लगा है। माना जाता है कि बिजली की रोशनी वाले क्षेत्रों में हाथियों की घुसपेैठ नहीं होती। लेकिन जिले में भ्रमण कर रहे हाथियों के दल इस मिथक को तोड़ते नजर आ रहे हैं। हाथियों का दल तपकरा,बगीचा,कुनकुरी,दुलदुला जैसे नगरी क्षेत्रों में दस्तक दे चुके है। हाथियों के हमलों का सामना कर रहे ग्रामीणों के मुताबिक हाथी धीरे-धीरे बिजली की रोशनी के अभ्यस्त होने लगे हैं।और यही बात अब नए खतरे के रुप में सामने आ रही है ।