4 बाई 4 के लकड़ी के लट्ठों की खुली झोपड़ी, न बस्ती तक पहुंचने का रास्ता और न ही बिजली, पानी की सुविधा। यह स्थिति है छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से मशहूर मैनपाट में निवासरत विशेष संरक्षित कोरवा जनजातियों की। ग्राम पंचायतों के पुनर्गठन की विसंगति और शासकीय योजनाओं के नहीं पहुंच पाने से कुछ क्षेत्रों के पहाड़ी कोरवाओं की बदहाली देखकर हर कोई सिहर उठेगा। एक ओरचंद्रयान की उपलब्धि गिनाई जा रही है, दूसरी ओर आजादी के सात दशक बाद भी इसी देश में एक ऐसा तबका निवासरत है जो बुनियादी सुविधाओं से महरूम किसी तरह एक-एक दिन बिता रहा है ।
मैनपाट को पर्यटन के नक्शे में स्थापित करने के लिए पिछले कई वर्षों से कोशिश की जा रही है। बाहर से आने वाले पर्यटकों की सुविधाओं के लिए बड़ी राशि खर्च की जा रही है। पहाड़ी कोरवाओं के उत्थान के नाम पर अलग विभाग संचालित है । पहाड़ी कोरवा विकास अभिकरण के नाम पर पानी की तरह पैसा बहाया गया है लेकिन यह पहाड़ी कोरवा पानी के लिए भी तरस रहे हैं। मैनपाट के ब्लॉक मुख्यालय नर्मदापुर ग्राम पंचायत के लगभग आधा दर्जन गांव पहुंचविहीन हैं जब विकासखंड मुख्यालय के गांव पहुंचविहीन होंगे तो मैनपाट के दूरस्थ इलाकों की बदहाली आसानी से समझी जा सकती है।
ग्राम पंचायत नर्मदापुर का गठन विसंगति पूर्ण किया गया है। 7100 मतदाता और 15 हजार की आबादी वाले पंचायत का दातीढाब, रंगवापारा ,घटगांव जामपहार, बरवाली, वितुलढाब ऐसी बसाहटें हैं जहां बरसात के दिनों में पहुंचना मुश्किल होता है। इसमें से जामपहार ऐसी बस्ती है जो 2 ग्राम पंचायतों में पड़ती है। जानपहार बस्ती का एक हिस्सा नर्मदापुर ग्राम पंचायत में तथा दूसरा ग्राम पंचायत पीडिया में पड़ता है। जामपहार से लगा हुआ लोटा पानी बस्ती है। यह कटकालो ग्राम पंचायत में आता है। इन सभी बसाहटों में सर्वाधिक आबादी विशेष संरक्षित कोरवा जनजाति की है। इन बस्तियों में उरांव और यादव समाज के लोग भी रहते हैं ।
इन सभी बस्तियों से पंचायत मुख्यालय की दूरी 15 किलोमीटर तथा सीतापुर की दूरी 30 किलोमीटर पड़ती है ।बरसात के दिनों में नदी नालों के कारण यह सारी बसाहट पहुंचविहीन हो जाती हैं । स्वास्थ सुविधा के नाम पर इन बस्तियों में कुछ भी नहीं है। यदि कोई बीमार हो जाए तो जंगल पहाड़ का 15 किलोमीटर का सफर तय कर इन्हें नर्मदापुर जाना होता है यदि सीतापुर जाना चाहे तो लगभग 30 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है ।
अभी तक इन बस्तियों में बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया नहीं कराई जा सकी है। पानी के लिए ढोढ़ी सहारा है। बिजली सुविधा के नाम पर सोलर पैनल लगाए गए थे जिनमें आधे से अधिक खराब हो चुके हैं ।इन बसाहट में सरकारी योजनाएं आज तक नहीं पहुंची है।
ग्राम पंचायत नर्मदापुर के जामपहार में 80 साल का झींगा कोरवा निवास करता है। साथ में उसकी पत्नी बिफनी 70 वर्ष भी रहती है। उसका घर 4 बाई 4 फिट का है, जो कि लकडी के लट्ठे से बना हुआ है। घर में दो चार बर्तन और नीचे जमीन पर बिछाने के लिए प्लास्टिक के अलावा कुछ भी नहीं है । दंपति को शासन की योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
राशन लेने 10 किलोमीटर दूर जंगल पहाड़ का रास्ता तय दंपति को पीडिया जाना पड़ता है । पेंशन स्वीकृति के लिए कई बार उसने कोशिश की लेकिन कोई प्रयास सफल नहीं हुआ । नजदीक में ही लकड़ी की एक और झोपड़ी है जिसमें उसका पुत्र और बहू रहते हैं।
ऐसे जरूरतमंद लोगों के लिए ही प्रधानमंत्री आवास योजना संचालित की जा रही है लेकिन ऐसे अभावग्रस्त क्षेत्रों के जरूरतमंद लोगों तक प्रधानमंत्री आवास योजना कब तक पहुंच पाएगी इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिस बदहाली के दौर में इन बसाहटों के लोग निवास कर रहे हैं उसे देख कर लगता ही नहीं है कि केंद्र व राज्य सरकार द्वारा जनकल्याण की ढेरों योजनाएं संचालित की जा रही है।
इस परिस्थिति के लिए पंचायतों के पुनर्गठन में बरती गई विसंगतियां अहम कारण है । जब 1 ग्राम पंचायत की आश्रित बस्ती 15 किलोमीटर दूर होगी तो आसानी से समझा जा सकता है कि उस बस्ती का विकास और शासन की योजनाओं को पहुंचा पाना संभव ही नहीं है।
अगले साल त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होने हैं यदि उसके पहले नर्मदापुर ग्राम पंचायत के दूरी वाले बस्तियों को मिलाकर नया ग्राम पंचायत बना दिया जाए तो संभव है कि इन बस्तियों में रहने वाले लोगों के भी दिन फिरेंगे और उन्हें भी बेहतर बुनियादी सुविधाएं धीरे-धीरे मिलनी शुरू हो जाएंगी। दूरस्थ क्षेत्रों में निवासरत पहाड़ी कोरवा आज भी आदिम युग की तरह जी रहे हैं।
जाम पहार के झींगा कोरवा लाल चीटियों से बचने के लिए हर रोज लकड़ी के कोयले को जला कर घर के चारों ओर बिछाता है ताकि चीटियां ना निकले और रात को वह झोपड़ी के भीतर प्लास्टिक बिछा कर चैन की नींद सो सके ।खेती किसानी के नाम पर थोड़ी बहुत जमीन है जिसमें खरीफ सीजन में मक्का और दूसरी फसल लगाकर थोड़ी बहुत पैदावार वह ले लेता है। रियायती दर पर मिलने वाले चावल और वनोपज उसकी जिंदगी का अहम हिस्सा है किसी तरह वह जीवन के अंतिम दिन बिता रहा है।