Home News 19 साल पहले गई बिजली आज तक नहीं लौटी

19 साल पहले गई बिजली आज तक नहीं लौटी

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बीजापुर जिले के एक छोर से बहती वेरूदी नदी, जिसका स्थानीय बोली में शाब्दिक अर्थ सूर्योदय की दिशा से होकर बहने वाली नदी बताया जाता है और इसी नदी के पार बसा है गांव पदमूर, जहां बुधवार को चौदह सालों बाद स्कूल की घंटी बजी है। यही नहीं यहां 19 साल पहले गुल हुई बिजली आज तक बहाल नहीं हो पाई है। वेरूदी नदी पदमूर को गंगालूर मार्ग पर बसे चेरपाल से अलग करती है। यह नदी न सिर्फ दो गांवों को विभाजित करती है बल्कि लोकतंत्र और लालतंत्र की सरहद भी तय करती है। वेरूदी नदी के पार कोटेर और इसके आगे पदमूर गांव बसा है। बुधवार को जब पदमूर में बच्चों के लिए स्कूल के दरवाजे खुले तो ग्रामीणों में विकास को लेकर उम्मीदें भी जगी। नईदुनिया की टीम ने गांव के हालातों का जायजा लिया और ग्रामीणों से चर्चा भी की। ग्राम पंचायत पदमूर में सात पारा है और आबादी चार सौ के करीब है। गांव में कुल नौ हैण्डपंप पीने के पानी के लिए वर्षों पहले स्थापित किए गए थे, अब इनमें अधिकतर हैण्डपंप खराब हो चुके है, वही कुछ का पानी उपयोग लायक भी नहीं। कमोवेश यह स्थिति पदमूर के आस-पास बसे कुछ और गांवों में भी देखने को मिली। हैण्डपंप खराब होने से लाचार ग्रामीणों को पीने का साफ पानी लाने काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है। ग्राम प्रमुख गोंदे सामू, मुच्चा मरकाम के मुताबिक 1995 में पहली दफा गांव में बिजली आई थी, लेकिन पांच साल बाद बिजली जो गई आज पर्यंत नहीं लौटी। गांव को रोशन करने सोलर विद्युतीकरण की कवायद भी कभी नहीं हुई। मजबूरी में पदमूर अब भी चिमनी युग में है।

बारिश में पदमूर बन जाता है टापू

वरूदी नदी के पार रेड्डी, चेरपाल गांव बसे हैं। नदी पार करते ही नजदीकी गांव रेड्डी पड़ता है, जहां स्वास्थ्य केंद्र से लेकर राशन दुकान चल रहे हैं। सरकारी सुविधाओं का अगर लाभ लेना हो तो पदमूर वासियों को मजबूरन वरूदी नदी को पार करना पड़ता है। बारिश और उफनती नदी की अधिक मार मरीजों पर पड़ती है। गत वर्ष हेमला रेशमा नाम की आठ वर्षीय किशोरी की मौत मलेरिया से हो गई थी। परिजनों की मानें तो मलेरियाग्रस्त हेमला को वे अस्पताल नहीं पहुंचा पाए थे। सूचना क्रांति के इस दौर में पदमूर कोसों दूर है। इलाके में मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं पहुंच पाई है। पदमूर में गिनती के तीन मोबाइल है।

नक्सलियों का है दबदबा

ग्राम पंचायत का दर्जा प्राप्त पदमूर में तूती माओवाद की बोलती है। माओवाद समस्या के चलते गांव में तमाम विकास कार्य वर्षों से रूके हैं। दबी जुबां से ग्रामीण भी इस बात को स्वीकारते हैं। बताया गया है कि नक्सलियों की इजाजत के बिना निर्णय लेने की आजादी नहीं है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांव के विकास को माओवाद समस्या ने किस हद तक प्रभावित कर रखा है।