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बना रहे बाल संघम, बच्चों को आगे करके जंग लड़ना चाहते हैं नक्सली

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लगातार गिरफ्तारी, मुठभेड़ और आत्मसमर्पण से नक्सलियों के लड़ाके कम हो रहे हैं। ऐसे में नक्सलियों ने अपने नए लड़ाके तैयार करने के लिए छोटे बच्चों को टारगेट कर रखा है। नक्सली स्कूली बच्चों को भी बरगलाकर अपने साथ ले जाते हैं और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। आत्मसमर्पित नक्सलियों की मानें तो लीडर बच्चों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

बच्चों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देने से पहले मुखबिरी, संतरी, सप्लायर और अब तो बम इंप्लांट करने के लिए कहा जाता है। इसके बाद 12 बोर बंदूक या भरमार चलाने दिया जाता है। बच्चों के बीच अपनी पैठ बनाने अंदरूनी इलाकों के आश्रम शालाओं में इनकी आमदरफ्त रहती है। पुलिस अधिकारी नक्सलियों की इस नई चाल से चिंतित हैं।

दंतेवाड़ा जिले में पिछले एक-डेढ़ साल में आधा दर्जन स्कूली बच्चों को पुलिस ने नक्सली सहयोगी के रूप में हिरासत में लिया गया है। काउंसिलिंग के बाद उन्हें छोड़ दिया गया। इस दौरान बच्चों से खास जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई लेकिन जो हुई वह भी कम खतरनाक नहीं है।

इसी साल मार्च-अप्रैल में कटेकल्याण-कुआकोंडा और बारसूर थाना इलाके के कुछ बच्चों को जवानों ने जंगल में धर दबोचा था। उनके पास से टिफिन बम, पटाखे, इलेक्ट्रिक वायर जैसी सामग्री मिली थी। कटेकल्याण इलाके के एक बच्चे के पास से एंड्रायड फोन बरामद हुआ था, जिसके मेमोरी कार्ड में नक्सल साहित्य भरा था। सामान्य नक्सल गीत, सिनेमा के अलावा लीडरों का भाषण और पुलिस विरोधी वक्तव्य से कार्ड भरा था।

एसपी दंतेवाड़ा डॉ. अभिषेक पल्लव कहते हैं कि नक्सल संगठन में संख्या कम होने से नक्सली अब बच्चों का उपयोग कई तरह से कर रहे हैं। बच्चे गीत- संगीत और मोबाइल को देखकर प्रभावित होते हैं। नक्सली उन्हें मोबाइल उपलब्ध करा देते हैं। बच्चे दवाइयां और अन्य सामान लेकर इन तक पहुंचते हैं, जिन्हें रोकने पर मानवाधिकार की बात सामने आती है, क्योंकि बच्चे स्कूल ड्रेस में रहते हैं। यह पुलिस के लिए बड़ी चुनौती है।