जगदलपुर । पेड़ों से लिपट कर उन्हें सुखा देने वाली कांटेदार चिल्हाटी बेल को काटकर बेचने की अनुमति वन विभाग ने ग्रामीणों को दे दी है। इसके चलते दर्जनों ग्रामीण जंगलों में पेड़ों से लिपटी चिल्हाटी बेल को काट तथा उसकी छाल उतार कर 30 रुपए की दर से आंध्रप्रदेश के व्यापारियों के पास बेचने लगे हैं।
इससे जहां हजारों पेड़ सूखने से बच रहे हैं, वहीं ग्रामीणों को अतिरिक्त आय भी होने लगी है। बस्तर के जंगलों में चिल्हाटी नामक बेल की अधिकता है। इसका अंग्रेजी नाम ‘क्लाइबिंग वाटली फॉर फैदर आसिया’ है। ग्रामीण इसे चीलबेल के नाम से जानते हैं।
यह पेड़ों को मजबूती से जकड़ लेती है और सूखा देती है, वहीं इसके चलते ग्रामीणों को जंगल से वनोपज एकत्र करने में भी परेशानी होती है, इसलिए वन विभाग ने ग्रामीणों को इस बेल को काट कर बेचने की छूट दे रखी है।
पुसपाल, धनियालूर, कुरंदी, चिलकुटी, कावापाल आदि गांवों के ग्रामीणों ने बताया कि चील की बेल में कांटे होते हैं। इसकी छाल को काटते समय काफी सावधानी रखनी पड़ती हैं चूंकि आंख में रस पड़ने पर काफी जलन होती है इसलिए चश्मा लगाकर छाल उतारना पड़ता है।
बताया गया कि यह छाल आंध्रप्रदेश के व्यापारी दो साल से वनांचल के ग्रामीणों से खरीद रहे हैं। गीली छाल 30 रुपए प्रति किलो की दर से खरीदा जा रहा है। बताया गया कि चील छाल का उपयोग शैम्पू के अलावा विभिन्न दवाइयां बनाने में होता है।
इस संबंध में वन अधिकारियों का कहना है कि चिल्हाटी बेल के कारण हर प्रकार के वृक्ष असमय सूख जाते हैं। इससे विभाग को आर्थिक नुकसान होता है, इसलिए इसे काटने पर प्रतिबंध नहीं है।