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भारत में यहां शादी से पहले ही मनाई जाती है सुहाग रात : बस्तर का घोटुल प्रथा

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आप नाईट क्लब या पब को पश्चिमी सभ्यता की देन मानते है तो आप गलत है!!!! प्राचीन भारत में भी हमारी संस्कृति समृद्ध थी। स्त्री-पुरुषों के संबंधो में खुलापन था,खजुराहोका मंदिर इसका प्रमाण है,पर इसे समय के साथ पश्चिमी सभ्यता की  भोगवादी परम्परा ने हमारी संस्कृतियों को तहस नहस कर दिया।

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इसी कड़ी में आपको बस्तर की अनूठी संस्कृति से परिचय करवाते है।  बस्तर आते ही हरेक के मन में जिज्ञासा होती है कि यह घोटुल है क्या…???जिसे हर कोई जानना चाहता है।दरअसल घोटुल बस्तर के आदिवासियों की समृद्ध परम्परा का एक रूप है,जहाँ युवक-युवतियां जिसे स्थानीय भाषा में चेलिक-मोटियारी कहा जाता है,एक दुसरे के साथ मिल कर भावी जीवन की रुपरेखा तय करते है।अब आपको ले चलते है  घोटुल के अनछुए माहौल में…. जहाँ सूरज ढलने के कुछ ही देर बाद युवक-युवतियां  धीरे-धीरे इकट्ठे होने लगते है,स्थानीय लोकगीत गाते और  वाद्ययंत्रो की थाप में थिरकते घोटुल( एक तरह की झोंपड़ी) तक पहुँचते है समूहों के बीच गाना बजाना चलता रहता  है,हंसी-ठिठोली  मजाक मस्ती के बीच धीरे- धीरे अँधेरा घिरते  ही बड़ा समूह  बिखर कर छोटे -छोटे जोड़ों में बंट जाता है । जहाँ युवक-युवतियां अपने  प्रिय साथी के साथ मधुर वार्तालाप में सलग्न  हो जाते  है। अगर  युवक-युवती के विचार आपस में मेल खाते है तो वे भावी जीवनसाथी बनने का निर्णय लेते है।लगातार रातभर एक दुसरे के साथ रहने के कारण घोटुल में ही प्रेमी जोड़े आपस में यौन अनुभव प्राप्त कर लेते है। आगे चल कर यदि कोई युवती गर्भवती हो जाती  है,तो उससे  उसके साथी का नाम पूंछ कर उसका विवाह उससे कर दिया जाता है। इस घोटुल में छोटी उम्र के लड़के-लडकियां घोटुल की साफ़ सफाई व पानी की व्यवस्था में लगे रहते है, साथ ही ये अपने बड़ो के  क्रियाकलाप देख कर स्वयं भी वैसे बनते चले जाते है।

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