बस्तर संसदीय सीट के लिए मतदान की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। बस्तर के मतदाता 11 अप्रैल को अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसके बावजूद बहुत से गांव ऐसे हैं, जहां किसी भी राजनीतिक दल का प्रत्याशी तो दूर अब तक कार्यकर्ता भी प्रचार के लिए नहीं पहुंचे हैं। इसके बावजूद हाट- बाजारों के माध्यम से चुनावी हवा गांवों तक पहुंच रही है। हाट- बाजार से लौटे लोग गांव की चौपाल और बैठकों में प्रत्याशियों और चुनाव पर चर्चा कर रहे हैं।
दरअसल राजनीतिक दलों ने इस बार अपने प्रचार के लिए हाट- बाजारों में ही पूरी ताकत झोंक रखी है। गांवों में लगने वाले हाट- बाजार में एक तरफ भाजपा तो दूसरी तरफ कांग्रेस का पंडाल तन रहा है। लोगों को आकर्षित करने के लिए झंडा-पोस्टर के साथ तेज आवाज में साउंड सिस्टम से पार्टी का चुनावी गीत बजाया जा रहा है।
पंडाल में बैठे कार्यकर्ता आने-जाने वालों को हाथ जोड़कर वोट की अपील कर रहे हैं। कोई परिचित मिल जा रहा है तो उसे पकड़ कर अपने साथ बैठा भी रहे हैं। डीजे साउंड सिस्टम से लदी एक गाड़ी भी है जो थोड़ी-थोड़ी देर में बाजार के एक कोने से दूसरे कोने तक चक्कर मार आती है। यह नजारा बस्तर के लगभग हर हाट बाजार में पिछले कुछ दिनों से दिख रहा है।
पूरे बस्तर संभाग में हर रोज बड़ी संख्या में हाट- बाजार लगते हैं। कहीं छोटा तो कहीं बहुत बड़ा। बाजार के छोटे- बड़े होने का अंदाजा वहां होने वाले कारोबार से लगाया जा सकता है। कई बाजारों में सीमावर्ती राज्यों के भी व्यापारी पहुंचते हैं।
ट्रकों में लदकर माल आता है और वापसी में भी स्थानीय लोगों से खरीदे गए सामान लाद कर ले जाएग जाते हैं। आंध्र प्रदेश के एक बड़े व्यापारी के लिए आदिवासियों से वनोपज खरीदने वाले सागर के अनुसार विशेष रूप से महुआ और ईमली जैसे वनोपज का सीजन चल रहा हो तो एक दिन में एक लाख स्र्पये तक की खरीदी हो जाती है।
हाट- बाजार में वोट की अपील करने बैठे दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं से इसकी वजह पूछी गई तो दोनों तरफ से जवाब लगभग एक सा मिला। उनका कहना था कि अभी लोग खेती- किसानी से लेकर विभिन्न् स्थानीय त्योहारों और कार्यक्रमों में व्यस्त हैं। घरों में लोग मिल नहीं रहे हैं।
गांव-गांव पूरा दिन घूमने के बाद भी उतने लोगों से संपर्क नहीं हो पाता है, जितने लोगों से यहां हाट- बाजार में हो जाता है। एक कार्यकर्ता ने कहा कि वैसे भी अभी चार महीने पहले ही चुनाव हुआ है, इस वजह से लोगों में इस चुनाव को लेकर ज्यादा उत्साह भी नहीं है।
चुनावी सभाएं भी बाजार के आसपास ही
राजनीतिक दल चुनावी सभा के लिए भी हाट-बाजार के आसपास का क्षेत्र ही चुन रहे हैं। शुक्रवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की जगदलपुर विधानसभा क्षेत्र के नगरनार में आमसभा हुई। सीएम की इस सभा के लिए स्थान और दिन का चयन वहां लगने वाले बाजार के आधार पर ही किया गया।
स्थानीय लोगों के अनुसार शुक्रवार को नगरनार में बड़ा बाजार लगाता है। छोटे-बड़े लगभग सभी नताओं की सभा भी इसी तरह हाट-बाजार के दिन ही हो रही है ताकि भीड़ जुटाने में कोई दिक्कत न हो और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक बात भी पहुंच जाए।
जाएंगे पर्ची बांटने
राजनीतिक दलों के पास वोटरों से सीधा संपर्क करने का अब केवल एक अंतिम मौका बचा है, वह भी पर्ची वितरण। कार्यकर्ता कह रहे हैं कि वैसे भी हम या हमारी पार्टी का कोई न कोई व्यक्ति पर्ची बांटने जाएगा ही, तो उस समय भी लोगों से संपर्क हो जाएगा।
हाट- बाजार ही क्यों ?
सवाल उठ सकता है कि राजनीतिक दल घरों या गांवों में जाकर जनसंपर्क करने की बजाय हाट- बाजार में ही क्यों जा रहे हैं। इसका जवाब पाने के लिए बस्तर की संस्कृति और उसमें हाट- बाजारों के महत्व को समझना होगा। देवड़ा गांव के हाट में खड़े दिनेश मंडावी बताते हैं कि आदिवासियों की रोजमर्रा की पूरी जिंदगी और अर्थव्यवस्था से लेकर सामाजिक तानाबाना सब कुछ हाट- बाजार से जुड़ा हुआ है। अधेड़ उम्र के मंडावी पेशे से शिक्षक हैं।
कहते हैं.. देखिए मुझे अपने पोते के लिए चप्पल लेना था, तो मैं यहां आया। उन्होंने बताया कि केवल सब्जी-भाजी ही नहीं कपड़ा, बर्तन, आभूषण, श्रृंगार, साबुन, तेल से लेकर स्थानीय लोगों की जस्र्रत की हर वस्तु यहां मिलती है। यहां वे अपनी उपज चाहें वह फल, सब्जी हो या महुआ और ईमली जैसे वनोपज बेच सकते हैं। यह काम वे शहर जाकर भी नहीं कर सकते। यह आदिवासियों के मेल- मिलाप का भी एक स्थान है, क्योंकि हर बड़े हाट में आसपास के कई गांवों के लोग आते हैं।