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बीजापुर के अंदरूनी इलाकों से आदिवासी बच्चे कर रहे दूसरे राज्य में पलायन, ये है वजह

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छत्तीसगढ़ की 33 फीसदी आबादी आदिवासी जनजाति की है, फिर भी आदिवासी बदहाली की ज़िन्दगी जीने को मजबूर है. छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के सीमान्त गांवों के आदिवासियों की स्थिति तो और भी दयनीय है. सूबे के अंतिम छोर में बसे आदिवासियों को सरकार रोज़गार उपलब्ध कराने में भी नाकामयाब साबित हो रही है. नतीजतन अब आदिवासी अपने साथ अपने परिवार की भूख मिठाने पड़ोसी राज्य तेलंगाना की ओर पलायन करने को मजबूर है.

बीजापुर के उसूर विकासखंड के धरमाराम, दारेली और कोंडापल्ली समेत 10 से अधिक आश्रम छात्रावासों में अध्ययनरत छात्र अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ अपने परिवार के साथ पडोसी राज्य तेलंगाना की ओर पलायन करने को मजबूर है. खुद छात्र बताते हैं कि तेलंगाना में मिर्ची तोड़ने के एवज में उन्हे 2 से 3 हज़ार रूपये मेहनताना मिल जाता है. इन पैसों से ये खुद के साथ परिवार की छोटी-मोटी ज़रूरतें पूरी कर लेते है. परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद ही कमज़ोर होने के कारण ये छात्र पढ़ाई अधूरी छोड़ जनवरी के अंतिम सप्ताह में तेलंगाना की तरफ पलायन करते है. कुछ छात्र परीक्षा दिलाने मार्च या अप्रैल के महीने में वापस आश्रम लौट आ जाते है. मगर अधिकांश छात्र परीक्षा दिलाने भी वापस लौट नहीं आ पाते, जिससे इनकी पढाई हमेशा के लिए छूट जाती है.

आश्रम में पदस्थ अधीक्षकों के मुताबिक इस इलाके के 1 दर्जन से अधिक बच्चे पढ़ाई अधूरी छोड़ पडोसी राज्य तेलंगाना मजदूरी करने जाते हैं. छात्रों और उनके अभिभावकों को समझाने की पूरी कोशिश आश्रम प्रबंधन द्वारा किया जाता है, मगर अभिभावक अपने जिद पर बच्चों को अपने साथ मजदूरी करने तेलंगाना ले जाते है. कुछ छात्र अपनी मर्ज़ी से चोरी छिपे आश्रम से भागकर निकल जाते है.