थाने में रोज देनी पड़ती है हाजिरी जगदलपुर 04 मार्च (हि.स.)। बस्तर संभाग के सुकमा जिले का जगरगुण्डा एक ऐसा गांव है जहां चार गांव के 36सौ ग्रामीण जेल की तरह तार के घेरों में रहते हैं और कहीं आना जाना हो तो बकायदा केन्द्रीय सुरक्षा बल के कैम्प में हाजरी देनी पड़ती है। यहां के लगभग सौ बच्चे जो एक ही स्कूल में अध्ययनरत है , आज तक बाहरी दुनियां को नहीं देखा। तार के घेरे में पैदायशी और पढ़ाई भी शुरू हो गई। प्रशासन ने दावा किया है कि जल्द ही तार के घेरे को इनकी जिन्दगी से दूर किया जायेगा। यहां के अबोध बच्चे सरकार से आजादी की मांग कर रहें हैं, ताकि तार के घेरे से बाहर रह सके। यहां के सैकड़ों बच्चे जिनकी देखरेख केंद्रीय अर्ध सैनिक बल कर रहा है। आज अपनी हुनर, अपनी अकल के बल पर उस बाड़ को लगाने आतुर दिखते हैं। जिसे फेसिंग कहा जाता है। सबसे अच्छी बात है कि हुनर के इस समर में बालिकाएं भी बालकों की बराबरी पर हैं। छोटी उम्र में बड़ी जिन्दगी जीने की रेस में अव्वल, अकेले और अलग रहने के पड़ाव से परिचित बचपन आज उस मुकाम की ओर बढ़ चला है जहां दिशाहीनता घातक हो सकती है ।
तीर कमान युग की पीढ़ी इंटरनेट और स्मार्ट फोन के दौर से गुजर रही है। भ्रम और भ्रांतियों को तोड़ बेकरार बचपन न केवल अपना हुनर दुनियां को दिखाना चाहता है। उसकी तमन्ना है कि दुनिया का हर कोना उसकी नजरों से गुजरें। परन्तु इन बच्चों का भविष्य सुबह तार के घेरे से शुरू होती है और वहीं खत्म हो जाती है ।
सुकमा के अनुविभागीय दण्डाधिकारी राजस्व प्रदीप बैद्य ने बताया कि 2007 में नक्सली विरोधी अभियान सलवा जुडूम हुआ। इसी दौरान आसपास के चार गांव के लोगों को जगरगुण्डा स्थित बैस कैम्प में बसाया गया और इसकी सुरक्षा की लिहाज से गांव के लगभग दो हैक्टर क्षेत्र को तार से घेर दिया गया। चारों तरफ सुरक्षा बल की निगरानी में गांव आज तक तार के घेरे में हैं उन्होने बताया कि अब जगरगुण्डा में अस्पताल, बैंक, राशन की दुकान और भी सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही है। सलवा जुडूम के बाद से जगरगुण्डा में पुलिस निगरानी मे साल में दो बार राशन पहुंचाया जाता था।
प्रदीप कुमार बैद्य ने आगे बताया कि सुरक्षा की दृष्टि से तार का घेरा बनाया गया और इसमें 528 परिवार के 3600 लोग निवासरत है और तार का यह घेरा जल्द ही टुटने वाला है। जगरगुण्डा के वरिष्ठ नागरिक विजय जायसवाल ने बताया कि गांव के बच्चे से बूढ़े तक आजादी चाहते हैं। पिछले 12 सालों से तार के घेरे में रह रहें हैं। परन्तु अब एक साल से गांव में बाजार लग रहा है और धीरे – धीरे विकास कार्य भी खुल रहे हैं।
उन्होने बताया कि आसपास के गांव के लोग तारलागुड़ा, नीलमपल्ली, कुदेड़ ग्राम के निवासी जगरगुण्डा में बसे हुये हैं। उनका खेत बंजर हो चुका है और मकान ढह गये हैं। बस्तर की पारम्परिक तीज – त्यौहार, मेला मड़ई से दूर हो गये हैं। यहां एक माध्यमिक शाला है यहां तीन गांव के लगभग एक सौ छात्र अध्ययनरत हैं।
छात्र पोड़ियाम राजू ,कुमारी प्रतिभा उईका ने बताया कि बचपन से ही हम तार के घेरे में हैं जिससे हमारे पढ़ाई पर भी असर पड़ता है और दहशत में रहते हैं। हम स्वतंत्र नहीं घुम सकते। केन्द्रीय सुरक्षा बल के जवान सुबह 6 बजे गेट खोलते हैं और शाम 6 बजे गेट बंद कर देते हैं। सलवा जुडूम से पहले जगरगुण्डा पंचायत में रौनक थी।
आवागमन था, सारी सुविधा ग्रामीणों को मिल रही थी । पिछले 12 सालों से कैद में हैं। अध्ययनरत बच्चों ने मुख्यमंत्री से आजादी की मांग की ।