Home News छत्‍तीसगढ़ में फोर्स की गैर मौजूदगी में नक्सलियों का अभ्यारण्य बना अबूझमाड़

छत्‍तीसगढ़ में फोर्स की गैर मौजूदगी में नक्सलियों का अभ्यारण्य बना अबूझमाड़

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नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर से लेकर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले तक फैला अबूझमाड़ का इलाका नक्सलियों का अभ्यारण्य बना हुआ है। गुरूवार को फोर्स ने इंद्रावती नदी के पार जाकर दुस्साहसिक अभियान चलाया जरूर पर हकीकत यह है कि इस ओर नक्सलियों पर निगरानी रखने की कोई व्यवस्था नहीं है।

दक्षिण बस्तर में 2005 में सलवा जुड़ूम शुरू हुआ तो इंद्रावती के उस पार माड़ के इलाके तक फोर्स और जुड़ूम आंदोलनकारियों की पहुंच बनी थी लेकिन जुड़ूम के ठंडा पड़ने के बाद नक्सली निश्चिंत हो गए हैं।

हालांकि पिछली सरकार ने अबूझमाड़ में पकड़ बनाने की कोशिश काफी की लेकिन 44 सौ वर्ग किमी का यह इलाका वास्तव में अबूझ ही है। घने जंगलों, ऊंचे पहाड़ों से घिरे माड़ में नक्सलियों के कई कैम्प चलने की सूचना है।

यहां वाहन नहीं जा सकता। पैदल चलकर फोर्स बहुत अंदर तक नहीं जा सकती। माड़ में नारायणपुर की ओर से फोर्स कुछ अंदर तक जा चुकी है। सोनपुर और बासिंग में फोर्स की मौजूदगी से उस ओर हालात बदले हैं। लेकिन दंतेवाड़ा और बीजापुर की ओर फोर्स नहीं है।

इंद्रावती के पार 25 किमी अंदर जाकर फोर्स ने ऑपरेशन किया जो आसान नहीं था। डीजीपी डीएम अवस्थी कहते हैं कि फोर्स की पकड़ धीरे-धीरे मजबूत हो रही है। माड़ से इंटेलीजेंस इनपुट मिलना इस बात के संकेत हैं। उन्होंने कहा कि इंद्रावती के पार इस ओर भी कैम्प खोलने की तैयारी की जा रही है।

जल्द ही कुछ कैम्प खुलेंगे। दरअसल इधर से जंगल के अंदर कैम्प खोलना कठिन है। नदी होने की वजह से बैकअप मिलना मुश्किल है। कैम्प में रसद आदि भी पैदल ढोकर ले जाना पड़ेगा। इसका समाधान यही है कि इंद्रावती में भैरमगढ़, नेलसनार, मुचनार के आसपास पुल बनाए जाएं।

इधर से भागकर उधर जा रहे नक्सली

गुरूवार को ही ओड़िशा में पुलिस ने नुआपाड़ा इलाके में एक नक्सल कैम्प को ध्वस्त किया। यह ऐसा इलाका है जहां पिछले कई सालों से नक्सलियों की कोई गतिविधि नजर नहीं आई थी। जानकारों का कहना है कि बस्तर में जब भी दबाव बढ़ता है नक्सली ओड़िशा और तेलंगाना में नए ठिकाने तलाश लेते हैं। उन्हें पकड़ने के लिए संयुक्त रणनीति भी बनी है लेकिन वे रोज ठिकाने बदल रहे हैं।

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