ब्रिटेन के नेवी कमांडर ने अंडमान में 1880 से 1900 तक आदिवासियों पर इतने जुल्म ढहाये कि नार्थ सेंटिनल के लोगों ने अपने दरवाजे बाहरी लोगों के लिए बंद कर दिए. इस शख्स का नाम था मौरिस वाइडल पोर्टमन. वो सनकी था. आदिवासियों की न्यूडिटी को कैमरे में कैद करने को लेकर किसी भी सीमा तक चला जाता था
ये हैं मौरिस वाइडेल पोर्टमन, जिसके कारण अंडमान के नार्थ सेंटिनल द्वीप के आदिवासी किसी भी बाहरी शख्स को अपनी जमीन पर कतई पसंद नहीं करते. किसी भी बाहरी को देखकर वो तुरंत आक्रामक हो जाते हैं. हालांकि पोर्टमन ही वो शख्स भी हैं, जिन्होंने बाहरी दुनिया को पहली बार अपनी किताबों के जरिए अंडमान के आदिवासियों, उनकी भाषा और तौर तरीकों के बारे में बताया लेकिन माना जाता है कि पोर्टमन ने अंडमान के आदिवासियों पर जुल्म भी ढाये. जिसका परिणाम ये हुआ कि नार्थ सेंटीनल के लोगों ने खुद को दुनिया से एकदम काट लिया.
1880 में कमांडर पोर्टमन अंडमान पहुंचा. वो इंग्लिश रॉयल नेवी में बड़े पद पर था. उसे अंडमान का प्रशासक बनाकर भेजा गया. उसके साथ मिशनरीज के लोग भी वहां गए. इसके बाद अगले 20 सालों में इन लोगों ने वहां जो भी कुछ किया, उससे वहां के लोग उन्हें सख्त नापसंद करने लगे. वो जब तक अंडमान में रहा, तब तक उसने सनक और क्रूरता से भरे कई काम किये.
पोर्टमन अंडमान आदिवासियों की न्यूडिटी को लेकर इस कदर क्रेजी था कि वो उनका अपहरण कर जबरदस्ती कई तरह से उनकी तस्वीरें खींचता रहता था.
पोर्टमन ने 20 सालों में तमाम तरह के कुत्सिक प्रयोग आदिवासियों के साथ किए. हालांकि पोर्टमन का काफी समय अंडमान के बड़े इलाके में ही गुजरता था लेकिन कभी कभार वो दलबल के साथ नार्थ सेंटीनल भी जाता था.
जब पहली बार वो वहां पहुंचा, तो उसे देखकर नार्थ सेंटिनल के लोग भागने लगे. लेकिन वो एक वृद्ध दंपत्ति और उनके बच्चों को जबरदस्त बंदी बनाकर साथ ले आया. उस वृद्ध दंपत्ति की तो मौत हो गई. शायद उसने उन्हें कोई मल्हम लगाया था, जिस शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के अनुकूल नहीं होने के कारण बर्दाश्त नहीं कर पाए. बच्चों ने उसके साथ कुछ हफ्ते गुजारे. पता नहीं उसने इन बच्चों के साथ क्या किया. हालांकि कुछ हफ्तों बाद उसने इन बच्चों को वापस नार्थ सेंटिनल पर छोड़ दिया.
यकीनन उन बच्चों और वृद्ध दंपत्ति के साथ जो कुछ हुआ, उसे सेंटिनलीज शायद कभी नहीं भूल पाए. इस घटना के बाद पोर्टमन कई बार और नार्थ सेंटिनल गया लेकिन कभी कोई आदिवासी फिर उसके हाथ नहीं आया. वो उसे देखते ही छिप जाते थे.
जब भारतीय सरकार ने 60 और 70 के दशक में मानवशास्त्रियों के जरिए नार्थ सेंटिलन के आदिवासियों से संपर्क साधने की कोशिश तो वो बाहरियों के प्रति आक्रामक हो उठे. भारत सरकार ने इस अभियान को तुरंत खत्म कर लिया.