छत्तीसगढ़ : असली चुनावी परीक्षा से रूबरू है. सरकार की नाकामियों और अपने स्थानीय नेताओं की एकजुटता से चुनावी वैतरणी पार कर ली.
कांग्रेस के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का भी वह गृह राज्य है. सो, भाजपा सरकार की विफलताओं और उस पर भ्रष्टाचार के आरोपों ने कांग्रेस की राह और भी आसान कर दी. अब चुनौती वर्ष 2023 के अपने ही चुनावी प्रदर्शन को दोहराने की है.
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, की सत्ता से भाजपा को बेदखल कर सबको चौंका दिया था. छत्तीसगढ़ में तो भाजपा 15 साल से सत्ता में थी. विधायकों की बगावत के चलते भाजपा की सरकार गिर गई.
लेकिन मतदाताओं ने राज्य की सत्ता कांग्रेस को सौंपी थी. ऐसे में अपने उसी प्रदर्शन को दोहराना अब कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. हालांकि नवंबर में विधानसभा चुनाव वाले राज्य राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं.
चुनाव नतीजे तीन दिसंबर को आएंगे, तभी पता चलेगा कि अगले लोकसभा चुनाव में केंद्रीय सत्ता के लिए ताल ठोंकने वाले दोनों बड़े दल जनता के बीच कितने पानी में हैं. ये नतीजे इसलिए भी खास होंगे, क्योंकि ‘इंडिया’ नाम से नया विपक्षी गठबंधन बनने और भाजपा द्वारा अपने पुराने गठबंधन एनडीए के विस्तार के बाद तथा केंद्र सरकार पर तरह-तरह के आरोपों के बीच ये चुनाव हो रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में सत्ता के प्रमुख दावेदार रहे कांग्रेस और भाजपा नहीं चाहेंगे कि उन्हें पराजित मनोबल के साथ चंद महीने बाद लोकसभा चुनाव में उतरना पड़े. यही कारण है कि रणनीति से लेकर चुनावी वायदों तक में दोनों ने ही कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. ठोस नीति, कार्यक्रमों के बजाय लोक लुभावन वायदों पर जोर निश्चय ही बहस का विषय होना चाहिए, पर राजनीतिक दलों-नेताओं को शायद यही चुनाव जीतने का आसान कारगर फॉर्मूला लगता है.