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Vishwakarma Puja 2023; विश्वकर्मा पूजा के दिन क्यों की जाती है औजारों की पूजा, जानें क्या है इसका महत्व और पूजा विधि!

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हिंदू धर्म में विश्वकर्मा जयंती का खास महत्व है. ये त्योहार कन्या संक्रांति के दिन मनाया जाता है. इस साल ये त्योहार आज यानी 17 सितंबर को मनाया जा रहा है. दरअसल इस दिन ब्रह्मा जी के 7वें पुत्र भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था.

ऐसे में इस दिन विश्वकर्मा जी की पूजा की जाती है. मान्यता है जो भी इस दिन सच्चे दिल से भगवान विश्वकर्मा की पूजा करता है, उसको करियर के हर पड़ाव पर सफलता मिलती है और हर मनोकामना पूरी होती है.

भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का पहला वास्तुकार और शिल्पकार माना जाता है. ऐसे में उन्हें वास्तुकला का देवता भी कहा जाता है. इस दिन लोग अपने कार्यस्थलों पर पूजा करते हैं. बढ़ई, वेल्डर और राजमिस्त्री जैसे व्यवसायों से जुड़े लोग अपने औजारों की पूजा करती है.

क्यों मनाई जाती है विश्वकर्मा पूजा?

भगवान विश्वकर्मा की पूजा विश्वकर्मा जयंती के दिन की जाती है. ये त्योहार खास तौर से उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और कर्नाटक में मनाया जाता है. मान्यता है कि ब्रह्माजी ने पृथ्वी बनाने के बाद उसे संवारने का काम भगवान विश्वकर्मा को सौंपा था. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान विश्वकर्मा ने आकाश, भवन, पुष्पक विमान और हथियारों का निर्माण किया था. ऐसे में विश्वकर्मा जयंती के दिन उनकी पूजा करने से कौशल में सुधार आता है और नौकरी और व्यापार में भी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है. इस दिन मशीनों, औजारों की पूजा की जाती है और दुकानों को भी सजा कर भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है.

क्या है शुभ मुहूर्त और पूजा विधि ?

इस साल भगवान विश्वकर्मा की पूजा दोपहर 1 बजकर 43 मिनट पर की जाएगी. विश्वकर्मा जयंती के दिन पूजा और यज्ञ का विशेष महत्व माना गया है. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़ें पहनें. इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल छिड़कर शुद्ध करें और एक चौकी लगाएं. चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और फूल और चावल अर्पित करें. इसके बाद प्रथम पूज्य देवता भगवान गणेश का ध्यान करें और फिर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें. इसके बाद स्वास्तिक पर भगवान विष्णु और भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद पूजा करें और चौरस दीया जलाएं. इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें और सभी को प्रसाद बांटने के बाद खुद भी प्रसाद ग्रहण करें.